बहुत कुछ सिखायी मुकुटमणिपुर की अद्वितीय यात्रा
बहुत कुछ सिखायी मुकुटमणिपुर की अद्वितीय यात्रा, एक बच्ची ने खरगोश खरीदा जो वास्तव में ही बहुत प्यारा था। मैंने एक लकड़ी का तराशा हुआ कलम खरीदा। जिस पर एक ओर मुकुटमणिपुर और दूसरी ओर पर्वतरानी बंगाली में लिखा हुआ था।
वैसे तो मैंने बहुत सी यात्राएँ की है परंतु शिक्षक होते हुए अपने स्कूल के बच्चों को भ्रमण कराने हेतु पश्चिम बंगाल के मुकुटमणिपुर की यात्रा अद्वितीय थी। हमारे स्कूल के बच्चों का शीतकालीन शैक्षणिक भ्रमण पश्चिम बंगाल के मुकुटमणिपुर के लिए बिहार से रात को प्रारंभ हुआ था। हम लगभग सौ लोग थे। झारखंड होते हुए हम लोग अगले दिन दोपहर को पश्चिम बंगाल के मुकुटमणिपुर पहुँचे। यहाँ हम लोग एक होटल में ठहरे थे।
दस- बारह घंटे की यात्रा के बाद हम लोगों को भूख और थकान का आभास हो रहा था। वहाँ हमारे साथ आए भोजन विभाग के प्रमुखों द्वारा पनीर, पुलाव और सलाद तैयार किया गया। सभी अध्यापकगण बच्चों के साथ बैठकर भोजन किये। रात में आग जलाकर उसके चारों ओर हम लोग एकत्रित हुए फिर बच्चों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। कोई गाना गाया तो कोई स्वयं को नृत्य करने से रोक नहीं सका। सभी ने बहुत ही आनंद मनाया।
देर रात हम लोग सो गये क्योंकि सुबह भोजन करके शीघ्र ही घूमने जाना था। सुबह भोजन में छोला भटूरा बना था। हम सभी भोजन करके मुकुटमणिपुर डैम पहुँचे फिर वहाँ से बोट द्वारा सोनार बंगला पार्क, बनपुकुरिया हिरन पार्क, पारसनाथ पहाड़ी इत्यादि घूमने जाना था। जहाँ यह तय हुआ कि एक- एक बोट से लगभग बीस- बीस लोगों का समूह घूमने जाएगा। हमारे समूह में मेरे अर्थात् अध्यापक प्रणव भास्कर तिवारी के अतिरिक्त अध्यापिका स्नेहा कुमारी जी और अध्यापिका अपर्णा तिवारी जी के साथ अट्ठारह बच्चे थे।
हम लोग एक बोट में सवार होकर मस्ती के साथ जलविहार का आनंद लेते हुए फेरी घाट से अभ्यारण्य पार्क की ओर चल पड़े। किनारे पहुँचकर घाट पर बोट खड़ी हुई और हम लोग लगभग दो-तीन किलोमीटर पैदल चलकर सोनार बंगला पार्क पहुँचे। वहाँ विभिन्न प्रजाति के पक्षी देखने को मिले। वहाँ की हरियाली छटा बहुत ही मनोहर थी। हम लोग वहाँ कुछ समय मस्ती करके फिर बनपुकुरिया हिरन अभ्यारण्य पार्क गये।
वहाँ हम लोगों ने बारासिंघा देखा। सबसे अधिक आनंद हिरनों के साथ बिताया हुआ पल रहा। वहाँ से हम लोग बच्चों को लेके फिर बोट पर आये। बोट वहीं खड़ा हमारे घूमकर आने की प्रतीक्षा कर रहा था। हम लोग बोट से अगले घाट पारसनाथ पहाड़ी देखने गये। वहाँ पर्वतरानी माँ काली के साथ महाकाल जी विराजमान थे। वहीं पास में जैन तीर्थंकर पारसनाथ जी की मूर्ति थी। भगवान के दर्शन के बाद हम लोग फिर बोट से वापस फेरी घाट आ गये। फिर वहाँ लगे मेले का भ्रमण किया। बच्चों ने खिलौने खरीदे।
जिसमें से एक बच्ची ने खरगोश खरीदा जो वास्तव में ही बहुत प्यारा था। मैंने एक लकड़ी का तराशा हुआ कलम खरीदा। जिस पर एक ओर मुकुटमणिपुर और दूसरी ओर पर्वतरानी बंगाली में लिखा हुआ था। यह कलम मेरे इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए पर्याप्त था, और मुझे वहाँ कुछ खरीदने की इच्छा नहीं थी तो मैंने कोई खरीददारी नहीं की। हम लोग वहाँ आइसक्रीम खाये और वापस अपनी गाड़ी के पास आ गये फिर सभी अध्यापकगण बच्चों के साथ सड़क के किनारे एक साथ भोजन किये।
हम लोग सुबह ही होटल से बाहर आ चुके थे तो रास्ते में ही गाड़ी खड़ी करके वहीं भोजन में कुंभी की सब्जी और चावल बनाया गया था। भोजन करके फिर हम लोग दुर्गापुर की ओर शाॅपिंग माॅल देखने निकले। वहाँ बच्चों को स्वचालित सीढ़ी और लिफ्ट भी दिखलाया गया। जहाँ बच्चों ने खाने- पीने के सामान की शाॅपिंग की। मैंने वहाँ से कार्नचीज मोमोज खरीदा। दो सौ रुपये के पैकेट में पाँच मोमोज थे, जो इतना स्वादिष्ट था कि अब तक खाये किसी भी मोमोज में वो स्वाद नहीं जो उसकी बराबरी कर सके।
तब तक रात हो चुकी थी फिर हम लोग पूड़ी सब्जी खाये और अपने स्कूल की ओर वापस लौट पड़े। रास्ते में झारखंड से झारखंड की प्रसिद्ध मिठाई खिरमोहन जो कि एक मिट्टी के बर्तन में तौलकर दिया जाता था, एक सौ तीस रुपये का आधा किलो खरीदे। खिरमोहन के स्वाद का वर्णन कर पाने के लिए सचमुच कोई शब्द ही नहीं मिल पा रहा। रात भर यात्रा के बाद सुबह हम लोग अपने स्कूल में थे। यह यात्रा वास्तव में शिक्षक प्रणव भास्कर तिवारी के जीवन की अद्वितीय यात्राओं में से एक रही।
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