बालकथा : चिम्पी बिल्ली की शापिंग

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

जींस और टीशर्ट पहन कर चिम्पी बिल्ली तैयार हो गई थी। गोगल्स और स्पोर्ट्स शूज पहनने के बाद वह बहुत सुंदर लग रही थी। उसने मेकअप भी किया था। खुद को आईने में देख कर वह बहुत खुश हुई। इसी खुशी में उसने आईने से कहा, “आईना भाई, लग रही हूं न मैं खूब सुंदर? आज तो मैं हीरोइन की तरह तैयार हुई हूं। मुझे जो देखेगा, देखता ही रह जाएगा। आज मुझसे ज्यादा सुंदर कोई दूसरा नहीं है।”

इतना कह कर बिल्ली हाथ में पर्स ले कर बाजार में शापिंग करने के लिए चल पड़ी। वह मटक-मटक कर चल रही थी। वह रास्ते में जिसे भी देखती, मुसकरा देती। जो भी उसे देखता, उसकी खूब तारीफ करता। अपनी तारीफ सुन कर बिल्ली खुश हो जाती।

रास्ते में बिल्ली को बल्लू बंदर मिल गया। सजी-धजी बिल्ली को देख कर बल्लू बंदर ने कहा, “अरे बिल्ली मैडम, आज तो आप बहुत सुंदर लग रही हैं। कोई नई बात है क्या?”

बिल्ली ने हंसते हुए कहा, “नहीं बंदर भाई, कोई नई बात नहीं है। मुझे मेकअप करना, नए कपड़े, ब्रांडेड शूज और गोगल्स लगा कर शापिंग करने का शौक है। मैं तो मौज करती हूं।”

गंभीर हो कर बल्लू बंदर ने कहा, “हां बिल्ली जी, आप तो माडर्न इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ी हैं। जबकि मैं तो ठहरा गांव का गंवार। मुझे तो आप की तरह तैयार होना आता ही नहीं। आप की तरह मीठा स्मार्ट बीलना भी नहीं आता। अपनी तरह मुझे भी स्मार्ट बना कर अंग्रेजी बोलना सिखा दो। मैं भी तुम्हारी तरह हीरो बनना चाहता हूं।”

“बल्लू भाई यह सब सीखने में समय लगता है, रातोरात नहीं सीखा जा सकता।” चिम्पी बिल्ली ने कहा, “इसके लिए बहुत कुछ सीखना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है। पैसा कमाना पड़ता है मौज करने के लिए। मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता।”

“अरे बिल्ली जी मुझे पता है। आप ने खूब मेहनत की है। प्लीज, मुझे भी यह सब सिखा कर मेरी लाइफ बना दो।” बल्लू बंदर ने कहा।

“मुफ्त में मैं तुम्हें कुछ भी नहीं सिखाऊंगी। तुम मुझे नाश्ता कराओ, आइसक्रीम खिलाओ, तब सिखाऊंगी।” चिम्पी ने कहा।

“बिल्ली जी, चलो सामने वाले माडर्न माल में चलो। वहां आप की शापिंग भी हो जाएगी और मेरी तरफ से पार्टी भी।”

बिल्ली यह सुन कर खुश हो गई। बल्लू बंदर बहुत चालाक था। वह चिम्पी बिल्ली की तारीफ कर के टाइम पास कर रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि यह बिल्ली खुद को क्या समझती है। आज तो इसे सिखाना ही पड़ेगा।

बल्लू अपने दोस्त बंटू के शोरूम में बिल्ली को ले गया। बंटू बंदर ने चिम्पी बिल्ली को वेलकम कहा। बिल्ली तो खुश हो गई। वह मन ही मन बोली, “क्या इज्जत है मेरी। बल्लू मेरा चपरासी बन कर मेरे साथ चल रहा है। शोरूम का मालिक मुझे वेलकम कह रहा है।”

बल्लू ने चुपके से आंख मार कर बंटू से कहा, “यह बिल्ली खुद को बहुत सयानी समझती है, घमंडी भी है। तू इससे डबल भाव लेना। उसमें से मुझे दस प्रतिशत कमीशन देना। एक-एक समोसा और आइसक्रीम भी हम दोनों को खिला देना।”

बंटू सब समझ गया। उसने कहा, “ठीक है, आज इसे मैं समझा देता हूं। तेरा दस प्रतिशत कमीशन पक्का, साथ में समोसा और आइसक्रीम भी। धन्यवाद यार ऐसा ग्राहक लाने के लिए।”

चिम्पी बिल्ली ने बंटू का पूरा शोरूम उलटपलट डाला। खूब शापिंग की और सारा सामान पैक करा लिया। बंटू बहुत खुश हुआ। उसने दोनों को समोसा और आइसक्रीम खिलाई। समोसा और आइसक्रीम खा कर चिम्पी और बल्लू भी खुश थे। चिम्पी ने कहा, “यार बल्लू, तुम्हारे दोस्त बंटू का शोरूम तो बहुत बढ़िया है। उसने हमें नाश्ता भी कराया। अब सारे सामान का बिल बनवा लो। मैं उसे नकद पैसे दूंगी।”

बंटू ने कहा, “बिल्ली मैडम, कुल पच्चीस हजार रुपए हुए।”

बिल्ली ने अपना पर्स खोल कर देखा। फिर बोली, “अरे मेरे पर्स में तो पैसे ही नहीं हैं। मैं पैसे लाना ही भूल गई। साॅरी बंटू भाई, आज की शापिंग कैंसिल। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। फिर कभी आ कर शापिंग कर लूंगी।”

बल्लू और बंटू ने कहा, “रुपए बाद में दे देना। यह सारा सामान ले जाइए।”

“नहीं, मैं उधार खरीदारी नहीं करती।” चिम्पी ने कहा, “मेरा सिद्धांत है, पैसे दे कर ही सामान खरीदती हूं। अब मेरा मूड भी नहीं है…बाय।”

चिम्पी बिल्ली मन ही मन हंसते हुए वहां से चली गई। क्योंकि उसने बल्लू और बंटू को मूर्ख बना दिया था। दोनों को मूर्ख बना कर चिम्पी खुश थी। बल्लू और बंटू भी समझ गए थे कि चिम्पी ने उन्हें उल्लू बना दिया है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

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जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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