कविता : राह में कोई बंदिश नहीं

राजेश ध्यानी
राह में कोई
बंदिश नहीं
सपनें सज़ोए
चल पड़ा ।
इस राह की चाहत
उसे हुई
वो भी इस पर
चल पड़ा ।
मै धीरें चलने लगा
आ जाये
फिर संग चलेंगें ,
राह की मंजिल
पाकर रहेगें ।
मैं रुका वो भी रूका
उसके मन का
भेद लगा ।
मैं बोला
ये राह थी मेरी
तूने क्यूं इसे चुना ?
संग नहीं
छलना था इसको ,
मेरी आंखें भर आयी
कदमों की आहट
से मुझको
तूने क्यूं आवाज लगायी।
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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