लघुकथा : टिकट

लघुकथा : टिकट, उम्मीदवार धनकुबेर होना चाहिए, कम से कम पचास-सौ मुकदमे उसके नाम में पंजीकृत होने चाहिए। झूठ इमानदारी से बोल लेता हो। ✍️ मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, आगरा (उत्तर प्रदेश)
चुनावी बिगुल बज चुका था। बड़ी-बड़ी पार्टियों से टिकट प्राप्त करने के लिए उठापटक होने लगी। टिकट प्राप्ति के लिए ऐसे पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी इच्छा जाहिर की जिन्होंने अपनी आधी से ज्यादा उम्र पार्टी के झंडे उठाने, पोस्टर- बैनर चिपकाने, दरी बिछाने व बड़े नेताओं के तलवे चाटने में कभी कोई आनाकानी नहीं की।
परंतु इन बेचारे समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं को क्या पता कि टिकट प्राप्त करने के लिए एक विशेष योग्यता की जरूरत होती है, खासकर भारतीय वर्तमान राजनीति में…।
“उम्मीदवार धनकुबेर होना चाहिए, कम से कम पचास-सौ मुकदमे उसके नाम में पंजीकृत होने चाहिए। झूठ इमानदारी से बोल लेता हो। जनता को बहुत प्यार से गुमराह कर सकता हो। दंगे भड़काने व जातिवाद का जहर घोलने में माहिर हो। माहौल के हिसाब से मुखोटे बदल लेता हो।”
उपर्युक्त योग्यता समर्पित कार्यकर्ता में तो है नहीं इसलिए, अब बेचारा तन- मन -धन से पूर्ण समर्पित कार्यकर्ता टिकट न मिलने पर स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहा है। बड़ा राजनैतिज्ञ बनने का उसका सपना टूटकर कांच की तरह बिखर चुका है।
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