सावन को बरसते देखा है…

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
खेतों में, खलियानों में,
सावन को बरसते देखा है ।
झर-झर झरती बूंदें मोती जैसी
पेडों के पत्तों पर चमकती चांदी जैसी
बीजों को पौधा बनते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
धरती की भरती गोद
हंसों को नहाते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
नदी-नाले, ताल -तलैया भरते उफान
सागर लेता हिलोर
आसमान में इंद्रधनुष बनते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
गोरी की आंखों में मदिरा का नशा
मृदुल- मनोरम अमृत छलकाती बातें
काली नागिन सी चाल
सावन के प्यासे को तड़पते देखा है,
सावन को बरसते देखा है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »मुकेश कुमार ऋषि वर्मालेखक एवं कविAddress »संचालक, ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय | ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) | मो : 9627912535Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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