चंदन के समान

सुनील कुमार माथुर
सोमवार का दिन था । गर्वित हमेंशा की तरह अपनी दुकान जा रहा था । उसके साथ सुमित भी था जो उसी दुकान पर काम करता था । गर्वित और सुमित हमेंशा साथ – साथ दुकान जाते थे चूंकि सुमित का घर गर्वित के दुकान जाते समय रास्ते में ही पडता था इसलिए वह उसे अपने साथ ले जाता था । लेकिन आज सुमित और गर्वित जैसे ही दुकान के लिए निकले कि जालोरी गेट चौराहे पर उन्हें भीड नजर आई ।
गर्वित ने तुरन्त कार एक साईड में रोकी और भीड को चीरता हुआ आगे बढा । वह क्या देखता हैं कि एक बुढ़िया सडक पर एक्सीडेंट के बाद तडफ रही हैं और लोग उसे देख रहे हैं तो कोई विडियों बना – बना कर भेज रहे हैं लेकिन उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा हैं ।
गर्वित ने आव देखा न ताव और तत्काल उस बुढ़िया को उठाया और अपनी कार में डाल कर उसे अस्पताल ले गया । डाक्टरों ने तत्काल उसका उपचार शुरू कर दिया । दोपहर बाद गर्वित ने सुमित को दुकान भेज दिया और खुद अस्पताल में ही बुढ़िया के पास रूक गया । गर्वित ने उस बुढ़िया की खूब सेवा की और करीब चार दिन तक दुकान नहीं गया ।
गर्वित ने दिन – रात उस अम्मा की ( बुढ़िया की ) पूरी तरह से सेवा की चूंकि उस आम्मा के आगे – पीछे कोई नहीं था और वह अकेली जीवन व्यापन कर रही थी । चंद दिनों में वह ठीक हो गयी । तब डाक्टरों ने कहा , माताजी ! आप भाग्यशाली हो जो ऐसा सेवाभावी बेटा पाया । अन्यथा तो हम देखते हैं कि आजकल रोगी की सेवा करने से घर वाले भी कतराते हैं लेकिन आपके बेटे ने आपकी बहुत सेवा की। आपके पास चौबीसों घंटे बैठ कर जो सेवा की उसी की बदौलत आप इतनी जल्दी स्वस्थ हो पायी ।
अम्मा ने जब यह सुना और देखा तो उसकी आंखों से आंसू छलक पडें और बोली , डाक्टर साहब ! मै नहीं जानती हूं कि यह व्यक्ति कौन है ? इसने मेरी सेवा की शायद यह ईश्वर का भेजा हुआ कोई फरिश्ता है । अम्मा ने गर्वित के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे ढेर सारा आशीर्वाद दिया और कहा बेटा ! तूने मेरी जान बचाई । यह अहसान मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊंगी ।
इस पर गर्वित ने कहा , अम्मा जी ! यह तो मेरा फर्ज था । अगर दुःख में भी एक इंसान- इंसान के काम न आये तो वह कैसा इंसान हैं । इस पर अम्मा ने गर्वित को अपने गले लगा लिया । गर्वित ने कहा , मां ! आपके चरणों में तो उन्नत है और आपके चरणों की धूल मेरे लिए चंदन के समान हैं । यह दृश्य और उनकी बातें सुनकर डाक्टरों व नर्सिग स्टाफ की आंखों में भी खुशी के आंसू छलक पडें चूंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में ऐसा अद् भूत प्रेम दो अनजान लोगों में नहीं देखा था । बाद में गर्वित अम्मा को अपने घर ले गया और अपनी मां की तरह उस अम्मा की सेवा कर इंसानियत का फर्ज निभाया।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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