जीवन की पवित्रता

जीवन की पवित्रता, आज का इंसान बेईमानी, चोरी, डकैती, खून खराबा, हेराफेरी से भी नहीं डरता है और वह दुनिया का सारा धन अकेले बटोरने में लगा हुआ हैं। पढ़ें जोधपुर (राजस्थान) से की सुनील कुमार माथुर कलम से…
हम हमारी प्राचीन संस्कृति को देखे तो मालुम पडता हैं कि पहले जब लोग मंदिर एवं पूजा स्थल पर जाते थे तब ईश्वर से प्रार्थना करते थे हें प्रभु ! मेरा पडौसी सुखी रहे, साधन सम्पन्न रहे, रोग मुक्त रहे और हम भी उसी की तरह सुखी रहे व किसी भी वस्तु के लिए मोहताज न होना पडे। लेकिन आज का इंसान ऐसी प्रार्थना नहीं करता है और अपने लिए ईश्वर से बहुत कुछ मांगता है लेकिन पडौसी का बुरा हो ऐसी ही प्रार्थना करता हैं। यह कैसी स्थिति हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें ऐसा नहीं सिखाती हैं। वह तो सबके कल्याण की बात करती हैं न कि विनाश की।
आज का इंसान बेईमानी, चोरी, डकैती, खून खराबा, हेराफेरी से भी नहीं डरता है और वह दुनिया का सारा धन अकेले बटोरने में लगा हुआ हैं। वह डरता है तो केवल मौत से। चूंकि मृत्यु पर आज तक कोई विजय नहीं पा सका हैं। हमारे साधु संतों का कहना है कि भजन कीर्तन, कथा, पूजा पाठ व ईश्वर के नाम का स्मरण करके ही मृत्यु पर विजय पा सकते हैं यानि हम बिना दुख पाये इस लोक से परलोक जा सकते हैं। चूंकि कथा से ही हमें ऐसा सुंदर भाव मिलता हैं।
अपने निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिए कभी कभी सुखों का भी त्याग करना पडता हैं। अतः ऐसी परिस्थिति में तनिक भी न घबराइये और हंसते मुस्कुराते हुए खुशियों का त्याग कर लक्ष्य को हासिल कर लिजिए। चूंकि मनुष्य जीवन तो प्रभु की प्राप्ति के लिए है लेकिन हम अभी भी अंहकार व अंधकार में भटक रहे हैं।
आज हम प्रभु की भक्ति की बजाय जादू टोना व भोपा में विश्वास कर रहे हैं। आजादी के 75 वर्षो के बावजूद भी हम अंधविश्वास में जी रहे हैं यह कैसी विडम्बना है। आज हम राष्ट्र की मुख्यधारा से कट गये हैं, भटक गये हैं। परमपिता परमेश्वर को हम भूलते जा रहे हैं और अनैतिक कृत्य की ओर चले जा रहे हैं। जो कार्य हमें नहीं करने चाहिए वे ही कार्य हम धडल्ले से करते जा रहे हैं और अपनी ही सभ्यता और संस्कृति की अनदेखी करते जा रहे हैं।
आज हम लोक कल्याण की बातें कम और अपने नाम पद, प्रतिष्ठा और वाह-वाह लूटने के लिए कभी कभाद पुण्य का कार्य कर देते हैं। जीवन को पुण्य से जोडे रखने में ही भलाई है। आप पुण्य कर्म करेगे तभी आपका जीवन सफल हो पायेगा। हमें पाश्चातय संस्कृति और भोगवादी संस्कृति से बचना होगा और भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुसार ही कार्य करना होगा और चलना होगा।
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