साहित्य विमर्श : हिंदी के अकड़धर्मी कवि और उनका यू ट्यूब लाइव इंटरव्यू

साहित्य विमर्श : हिंदी के अकड़धर्मी कवि और उनका यू ट्यूब लाइव इंटरव्यू, मिथिलेश मुझे इंटरव्यू देने के लिए टी शर्ट पहनकर आये और अपने काव्य लेखन से जुड़े बौद्धिक प्रसंगों के बारे में विमर्शमूलक मुद्दों को उठाने के लिए सुशील कुमार नामक जामिया के किसी शोध छात्र को भी इन्होंने आमंत्रित कर रखा था # राजीव कुमार झा
हिंदी में वामपंथी विचारधारा पर आधारित पत्रिकाओं को लघु पत्रिका कहा जाता है। इसमें प्रकाशित होने वाले लेखक खुद को मुख्य धारा का लेखक मानते हैं और इनसे बातचीत करना आसान नहीं है। ऐसे लेखक बिला वजह किसी का भी अपमान कर सकते हैं और कभी कभार इन लोगों का यू ट्यूब पर मैंने जब कभी इंटरव्यू किया तो इन्हें पूछे गये प्रश्नों का अनाप शनाप जवाब देते देखा।
हाल में मिथिलेश श्रीवास्तव के संपन्न इंटरव्यू के दौरान यह बात खास तौर पर स्पष्ट हुई। मिथिलेश श्रीवास्तव हों मदन कश्यप हों या कुमार मुकुल हों इन लोगों का लेखन की दुनिया में क्या हालचाल है इस बात को सारे लोग जानते हैं। इनमें कोई दमखम भी शेष नहीं बचा है सिर्फ अकड़ बची हुई है।
मैंने मिथिलेश से इंटरव्यू के लिए एक पैसा नहीं लिया था और उन्हें लग रहा था कि मानो यह सब फ्री का काम है। कविताएं भी अपने मन से पढ़े जा रहे थे और खुद को रघुवीर सहाय और केदारनाथ सिंह की पीढ़ी का कवि बता रहे थे। साहित्य की दुनिया के आदमी को इंटरव्यू लेने की कला का ज्ञान तो होना ही चाहिए इसके अलावा इंटरव्यू देना भी उसे आना चाहिए।
यह एक आर्ट है। दुनिया जानती है कि मिथिलेश श्रीवास्तव किस तरह के कवि हैं और निराला की तरह से उनको बिल्कुल नहीं देखा जा सकता है। दिल्ली में सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरी में अच्छा खासा कमाते रहे और इंटरव्यू देते हुए वह निराला बनने लगे और कुछ सवालों का जवाब देने की जगह भिक्षुक की तरह पेट – पीठ मिलाकर खड़े हो गये।
मिथिलेश मुझे इंटरव्यू देने के लिए टी शर्ट पहनकर आये और अपने काव्य लेखन से जुड़े बौद्धिक प्रसंगों के बारे में विमर्शमूलक मुद्दों को उठाने के लिए सुशील कुमार नामक जामिया के किसी शोध छात्र को भी इन्होंने आमंत्रित कर रखा था लेकिन वह चुप ही रहा और उसका नेटवर्क भी कमजोर था। रघुवीर सहाय और केदारनाथ सिंह की पीढ़ी का कवि बनने में मिथिलेश जी को अभी काफी समय लगेगा और संभव है कि यह सौभाग्य उन्हें अगले जन्म में प्राप्त हो।
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