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चुनावी झुनझुना बनकर रह गया रानीखेत जिला निर्माण

भुवन बिष्ट/देवभूमि समाचार

रानीखेत। चुनाव आते हैं और जाते हैं। न जाने कितने चुनावों को देख चुका है रानीखेत जिला निर्माण की आश लिए रानीखेत। दशकों से चली आ रही रानीखेत जिले की मांग अब मात्र चुनावी झुनझुना बनकर रह गयी है। वैसे कभी कभी रानीखेत जिले की मांग जोर पकड़ने लगती तो कभी शांत। वास्तव में देखा जाय तो राजनैतिक महत्वाकांक्षा का अभाव भी जिला निर्माण में अवश्य ही बाधक रहा है।

रानीखेत का ब्रिटिशकालीन गौरवशाली ईतिहास रहा है और स्वतंत्रता संग्राम के लिए आंदोलन हो या उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए आंदोलन या फिर दशकों से चली आ रही रानीखेत जिले की मांग के लिए आंदोलन की गवाह पर्यटन नगरी रानीखेत रही है। सोशल मिडिया पर भी “अभियान जिला रानीखेत” के नाम से जिले की मांग के लिए अभियान चला और इसकी सफलता के बाद इस अभियान ने धरातल पर भी स्मृति धरना के रूप में आकार अवश्य लिया।

रानीखेत जिले की मांग दशकों पुरानी है समय समय पर अनेक आंदोलन जिले की मांग को लेकर रानीखेतवासी करते आये है।रानीखेत जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात है, वहीं रानीखेत ब्रिटिशकालीन शासकों के समय से ही प्रशासनिक कार्यो की कार्यस्थली रही है।रानीखेत अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जन्मभूमि व अनेक प्रसिद्ध जनप्रतिनिधियों की कर्मस्थली व जन्मस्थली रहा है।

स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए आंदोलन या दशकों से चली आ रही जिले की मांग के लिए आंदोलन हो, इन सब आंदोलनों की गवाह है पर्यटन नगरी रानीखेत। रानीखेत में आज भी ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक भवन अपने सौंदर्य की गवाही दे रहा है कि ब्रिटिश शासनकाल में बड़े बड़े नामी अंग्रेज प्रशासकों ने रानीखेत से ही प्रशासन चलाया था और रानीखेत क्षेत्र बहुत ही पसंदीदा स्थान बन चुका था।

रानीखेत स्थित ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक भवन में आज भी संयुक्त मजिस्ट्रेट कार्यालय वर्तमान समय में स्थित है ।रानीखेत जिले की मांग भी दशकों पुरानी है यह मांग सन् 1960 से चली आ रही है। समय समय पर इसको लेकर स्थानीय नागरिकों ने अनेक बार आंदोलन किए। सन् 1985 में वृहद आंदोलन हुआ किंतु आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। सन् 1996 में उत्तरप्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चंपावत जिले की घोषणा की। रानीखेत फिर उपेक्षा से हाशिये पर चला गया। रानीखेत एक बहुत बड़े उपमंडल के रूप में जाना पहचाना नाम है ।

रानीखेत की यदि प्रशासनिक व्यवस्था पर नजर डालें तो यह बहुत पहले से ही सुदृढ़ रही है ।उपमंडल क्षेत्र की सबसे बड़ी तहसील के रूप में भी रानीखेत तहसील एक जाना पहचाना नाम है। यहां की प्रशासनिक व्यवस्था को कैंट बोर्ड मजिस्ट्रेट से लेकर सहायक आयुक्त और एडीएम जैसे प्रशासनिक अधिकारी कमान संभाल चुके हैं। दशकों से चली आ रही जिले की मांग जहां राज्य गठन के बाद जिला निर्माण की राह रानीखेत देख रहा था वहीं रानीखेत तहसील को छः तहसीलों में विभाजित कर दिया गया।

ब्रिटीश शासनकाल में रानीखेत अंग्रेज शासकों का पसंदीदा स्थल रहा। ब्रिटीश शासकों ने ही रानीखेत तहसील का गठन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय की भी गवाह रही है रानीखेत की प्रशासनिक व्यवस्था। बहुत बड़े उपमंडल क्षेत्र को समेटे रानीखेत तहसील में भिक्यासैण, द्वाराहाट, सल्ट, स्याल्दे, चौखुटिया आदि तहसीलें रानीखेत तहसील का ही हिस्सा रही हैं और रानीखेत तहसील सुदृढ़ तहसील के रूप में जानी जाती रही है।

रानीखेत जिले की मांग दशकों पुरानी है 2009 में अधिक्ता संघ व स्थानीय नागरिकों ने जिले की मांग को लेकर आंदोलन चलाया था। सन् 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने जिले की घोषणा की थी किंतु जिला फिर भी अस्तित्व में नहीं आ सका। हर चुनावों में रानीखेत जिला निर्माण की याद तो सभी को आती है किन्तु यह भी अब मात्र चुनावी ढोल बनकर रह गया है। रानीखेत जिला निर्माण अब मात्र चुनावी झुनझुना बनकर रह गया है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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From »

भुवन बिष्ट

लेखक एवं कवि

Address »
रानीखेत (उत्तराखंड)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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