कविता : बात बस इतनी थी…

इस समाचार को सुनें...

सिद्धार्थ गोरखपुरी

कमरे के अगले दरवाज़े से
वो क्लास में पैठा करती थी
लड़कियों वाली पहली पंक्ति में
बड़े शान से बैठा करती थी
मैं पिछले दरवाजे से हरदम
सकपका के पैठा करता था
पिछली पंक्ति की आरक्षित सीट पर
असहज भाव से बैठा करता था
बात बस इतनी थी कि…..
वो फ्रंट बेंचर थी और मैं बैक बेंचर

मास्टर साहब के कठिन प्रश्न का
झट से जवाब दे देती थी
उन्ही प्रश्नों की कठिन झड़ी
मेरी ज़ुबान ले लेती थी
प्रश्नों को सुनकर मेरा ध्यान
न जाने कहाँ चला जाता था
मेरी जिन्दगी में यार!!!!
बहुत ज्यादा था एडवेंचर
बात बस इतनी थी कि…..
वो फ्रंट बेंचर थी और मैं बैक बेंचर

गृहकार्य स्वीकार्य किए घर को
जब सायकिल से वो जाती थी
मूढ़ – विमूढ़ सहपाठियों की
कलुष दशा दर्शाती थी
मैं भी अपने मित्रों को
कुछ झूठे किस्से सुनाता था
खैर हर एक बात में
उसका हाव – भाव ही था सेंटर
बात बस इतनी थी कि…..
वो फ्रंट बेंचर थी और मैं बैक बेंचर

रिजल्ट जब अनाउंस हुआ
उसने विद्यालय टॉप किया
मेरा रिजल्ट सुना कर के
मास्टर साहब ने कई कंटाप
दिया
न जाने उस परीक्षा में कैसे कौन सा खेल हुआ
वह फर्स्ट डिवीज़न पास हुई
मैं फर्स्ट डिवीज़न फेल हुआ
वह अगले क्लास में प्रमोट हुई
मैं रह गया उसी क्लास का
फिर से आरक्षित बैकबेंचर
बात बस इतनी थी कि…..
वो फ्रंट बेंचर थी और मैं बैक बेंचर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights