कविता: आंसुओं की धारा तू रूक क्यूँ गयी
कविता: आंसुओं की धारा तू रूक क्यूँ गयी, मरूस्थल मे रोना, फसल मे हसंना, यहां तो…! ना किसी का आना, ना किसी का जाना, आंखिर तू क्यूँ रुक गयी। पढ़ें देहरादून, उत्तराखण्ड से राजेश ध्यानी ‘सागर’ की कलम से…
आंसुओं की धारा
तू रूक क्यूँ गयी।
वह जाना था तुझे,
ना मरूस्थल ना फसल
आंखिर क्यूँ रुक गयी।
मरूस्थल मे रोना
फसल मे हसंना
यहां तो…!
ना किसी का आना
ना किसी का जाना
आंखिर तू
क्यूँ रुक गयी।
सुनामी बन जा
मेरे लिये
बहा ले जा
संग अपने…!
यादें तैरती दिखें
अरमान चिल्लातें रहें
चाहत रोती बहे
सपने विखरें मिले।
प्यार किसे कहते है
शायर…?
इसका निशां ना मिले।
आंसुओं की धारा..!
रुक क्यूँ गयी।
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