कविता : समझ

कविता : समझ, समझदारी से अगर कुछ समझ आया भी, तो इसे समझ का नाम-ओ-निशां न समझ, तेरी समझ कह रही है के तुम अकेले हो, पर तूँ खुद के साथ है खुद को तन्हा न समझ, सिद्धार्थ गोरखपुरी की कलम से…
मुझे यहीं समझ, वहां ना समझ
नासमझ! समझ, मगर आसां न समझ
ये दौर समझ का है ये माना मैंने
खुद को समझ का असासा न समझ
गैर… गैर हैं चाहे अपने हों या पराए हों
इसे पूरा समझ मगर जरा सा न समझ
समझदारी से अगर कुछ समझ आया भी
तो इसे समझ का नाम-ओ-निशां न समझ
तेरी समझ कह रही है के तुम अकेले हो
पर तूँ खुद के साथ है खुद को तन्हा न समझ
ये दुनिया भी नासमझ है तूँ इतना समझ
ये कहती रहेगी के ये समझ वो ना समझ
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