कविता : रातरानी

राजीव कुमार झा

चांद आलिंगन में
तुम्हें लेकर
खामोश हो जाता
काले सागर में
डुबकियां लगाता

सितारों की
टिमटिमाहट से
आकाश को सजाता
जिंदगी की
अनुभूतियों को
मन में जगाता

खिड़कियों पर
दस्तक देती
हवा के साथ
खामोश दिशाओं का
चक्कर लगाता

पहाड़ की ढलान पर
आकर
आधी रात में
मुस्कुराता
सपनों का संसार
बसाता

तुम्हारे पास
सूरज सुबह में
जिंदगी के तट पर
चला आता
यहां धूप फैली
सुबह गुनगुनाती
तितली फूलों पर
मंडराती

तुम्हारा मन
कितना सुंदर है
इसमें रातरानी की
महक है
तुम झील हो
साफ पानी से
भरी

इसमें फूलों की
महक समायी
अरी रातरानी !
आहट होते ही
तुम मचल जाती
मानो बर्फ
पहाड़ों पर पिघलकर

ग्लेशियर में
चली आती
इस मौसम में
सबकुछ बदल रहा
शहर में
धूमधाम से मेला

सजा
चलो आज घूमेंगे
झूले पर अपने संग
बिठाकर
तुम्हें नीले आकाश में
चूमेंगे

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¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजीव कुमार झा

कवि एवं लेखक

Address »
इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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