साहित्य लहर
कविता : नयन
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दोनों नयन सावन बनकर
रिमझिम-रिमझिम बरसात करें
समझ तनिक आता ही नहीं
के कितने हैं जज़्बात भरे
मौन तनिक अंगड़ाई लेकर
चैतन्य हुआ फिर आह किया
दोनों नयनों में बहाव दिया
मन की शांति को तबाह किया
नयन से अश्रु की धार चली
और अधर तक जा पहुँची
सिसकियाँ मौन फिर साध गईं
नहीं पता के कहाँ पहुँची
हृदय वेदना से भरकर
धक् – धक् करता भाग रहा
करुणा को हल्की नींद सुलाकर
खुद आहें भरकर जाग रहा
यह सब देख मूक मन ने
उम्मीद को झट से जगा दिया
उम्मीद ने अशांति, बेचैनी को
थपकी देकर भगा दिया
उम्मीद के चैतन्य होते ही
आशा की किरणेँ निकल पड़ी
नयनों और आंसुओं पर
कुपित होकर झगड़ पड़ी
आंसू को अनमोल बताया
न बहने की हिदायत दी
आशा से दृढ़ता को जोड़ा
और मनुज पर इनायत की