कविता : नहर के पार

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राजीव कुमार झा

जाड़े के मौसम की
सुंदर वादियों में
गूंजते शादी के गीत
मनमीत
प्यार का पैगाम गाता
बंजारा
जाड़े के कुहासे में

आग सुलगाता
शहर में घूमता
आदमी
खुद को अकेला
जब कभी पाता
फिर फेसबुक पर
अपना चेहरा
सबको दिखाता

मैदान में बैठकर
गन्ने चबाता
बरसात के बाद
नदी को पार करता
सुबह की मेंड़ पर
पांव रखता
आगे कोई रास्ता
नहर के पार

जो निकलता
उसी के पास
खेतों में धूप
छायी
अरी सुंदरी
धान के पके खेतों को
तुम देखने
शाम में आयी
अब धूप ढल रही

नदी उदास हो गयी
सुबह तक पसरा
कोई सन्नाटा
सबको बुलाता
यहां आदमी
रात बीतने के बाद
आता
सुबह से तुम
यहां खड़ी हो
कितनी खुशियों से
भरी हो

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¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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From »

राजीव कुमार झा

कवि एवं लेखक

Address »
इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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