मंतव्य : हिंदी में साहित्य अकादमी पुरस्कार की बदहाली की चर्चा जरूरी है

हिंदी का अपना एक स्वरूप है और वृहत्तर संदर्भ में यह भाषा साहित्य से इतर आजादी के बाद जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी भूमिका निभा रही है। इसके साहित्य की पहचान में साहित्य अकादेमी पुरस्कार की एक महती भूमिका रही है लेकिन आज यहां विभ्रम कायम हो रहा है #राजीव कुमार झा
दोस्तो…
हाल में सोशल मीडिया पर साहित्य अकादेमी के द्वारा हिन्दी में साहित्य अकादेमी पुरस्कार के लिए अंतिम रूप से विचारार्थ चयनित दस पुस्तकों की सूची जारी हुई है और इसमें कुछ ऐसे आलतू फालतू लेखकों का नाम भी शामिल है इस महान पुरस्कार की पात्रता के लिए जिनके बारे में जानकर मुझे अत्यन्त दुख हुआ है। आशा है आप लोग सहयोग बनाए रखियेगा। अंततः संजीव को यह पुरस्कार दिया गया है। वह अच्छे लेखक माने जाते हैं। और भी कुछ लोग अच्छे लेखक माने जाते हैं।
संजीव का उपन्यास ऐसे ठीक ठीक ही होगा। साहित्य अकादेमी पुरस्कार सोच समझकर दिया जाये। मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे।
साहित्य अकादेमी की हिंदी पुरस्कार समिति में आलतू फालतू लोगों का बोलबाला हो गया है। कभी प्रभाकर श्रोत्रिय तो कभी नामवर सिंह तो कभी अशोक वाजपेयी का तो कभी विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का वर्चस्व यहां कायम रहा। काफी लोगों ने इस पुरस्कार को लिया और साहित्य को क्या दिया आप सभी जानते हैं।
इस बारे में राष्ट्रपति को बताना जरूरी है। नेहरू ने यह सब के लिए इस संस्था की स्थापना नहीं की थी। देश के द्वितीय राष्ट्रपति एस .राधाकृष्णन का भी इसकी स्थापना में योगदान रहा लेकिन आज यह संस्था दिल्ली में रहने वाले कुछ गये गुजरे लेखकों कवियों की संस्था मात्र बनकर रह गयी है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार की पहले एक गरिमा थी। यह पुरस्कार दिनकर जैसे चिंतक रेणु जैसे लेखक को दिया जाता था लेकिन लेखन की फैशनपरस्ती में साहित्य की अस्मिता निरंतर क्षीण होती गयी और अच्छे लेखक पुरस्कार के लिए नजरअंदाज किए जाने लगे।
दिल्ली में जेएनयू हिंदी की पुरस्कार राजनीति का केन्द्र बनकर उभरा और इससे बाहर हिंदी के लोग दोयम दर्जे के लेखक घोषित कर दिये गये। हिंदी में चतुर्दिक विभिन्न स्तरों पर राजनीति शुरू हो गयी और साहित्य निरर्थक विचार विमर्श का प्रसंग बनता चला गया। इन परिस्थितियों में बदलाव जरूरी है और साहित्य अकादेमी की गरिमा को कायम रखने के लिए सबको कमर कसना होगा।
हिंदी का अपना एक स्वरूप है और वृहत्तर संदर्भ में यह भाषा साहित्य से इतर आजादी के बाद जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी भूमिका निभा रही है। इसके साहित्य की पहचान में साहित्य अकादेमी पुरस्कार की एक महती भूमिका रही है लेकिन आज यहां विभ्रम कायम हो रहा है और आशा है आप सुधी साहित्य जन इसमें चिंतन की ओर समय और समाज को उन्मुख करेंगे।
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