करूणा के सागर

सुनील कुमार माथुर

हे प्रभु ! आप हमारे हैं और हम आपके हैं । हम आपकी शरण में आये हैं इसलिए आप हमारी रक्षा कीजिए । हमारे सभी कार्य बिना बाधा के सम्पादित कीजिए अर्थात जब कोई सच्चा भक्त प्रभु को पुकारता हैं तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए तुरंत दौडे चले आते हैं चूंकि वे अपने भक्तों को दुखी नहीं देख सकते हैं ।

इतना ही नहीं वे तो करूणा के सागर हैं । हमें प्रभु की कृपा पाने के लिए उनके नाम का स्मरण करते रहना चाहिए । माली पूरे साल पौधो और वृक्षों को पानी व खाद देता रहता हैं लेकिन पुष्प व फल तो ऋतु आती हैं तभी आते हैं । वैसे ही भगवान को ढूंढने की जरूरत नहीं है वे तो आपके आसपास ही हैं बस आपकों उन्हें देखना व पहचानना नहीं आता हैं ।

भगवान को तो बस भक्ति करके ही पाया जा सकता हैं और भक्ति के लिए समय चाहिए । जो व्यक्ति समय का सद् उपयोग करता हैं प्रभ् उसका बेडा पार लगा देते हैं अन्यथा राजा से रंक व रंक से राजा बनते देर नहीं लगती हैं । लेकिन लोग गपशप में समय बर्बाद कर देगे लेकिन भक्ति करते उन्हें शर्म आती हैं । समय ही नहीं मिलता हैं क्या करे जैसे बहाने बना कर समय को दोष देते हैं ।

आज लोग इतने आलसी और निष्क्रिय हो गये हैं कि वे भौतिक सुख सुविधाओं के भंवर जाल में फंस कर अपने धर्म और सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं । आज लोग भजन-कीर्तन व कथा कम करते हैं और वहां जाने से भी कतराते हैं लेकिन घंटों बेकार बैठकर परनिंदा व दूसरों की चुगली करने में बर्बाद कर रहें है । जबकि भजन-कीर्तन व कथा करने , कराने एवं सुनने से हमारी आत्मा शुद्ध होती हैं ।

जीवन में अगर सब कुछ मिल जाये लेकिन ईश्वर की भक्ति न मिले तो ऐसा नीरस जीवन किस काम का । इसलिए जीवन में ईश्वर की भक्ति का होना नितान्त आवश्यक है । भारत का गौरव माता – पिता एवं बुजुर्गों की सेवा करने मे ही हैं न की उनसे अलग रहने में । बुजुर्गों का सम्मान करने से हमारा कुछ भी नहीं जाता हैं अपितु उनके आशीर्वाद से हमारी बुध्दि, यश प्रतिष्ठा व बल ही बढता हैं।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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