व्यग्र पाण्डे
तुझ में इतिहास समाया है
हे विराट पुरुष ! हे महाज्ञानी !!
तुम एक किन्तु अनेक से हो
हे देश-धर्म के अभिमानी ।।
तुझ में चाणक्य की नीति है
नीति में बिदुर सी प्रीति है
तेरे कृत्यों से विश्व चकित
तुझ में सदियों की रीति है
ना है कोई अब तेरा सानी
हे विराट पुरुष ! हे महाज्ञानी !!
श्रीराम से तुमने धीरज पाया
दुष्टों को कृष्ण सा हड़काया
किये सहस्रबाहु छेदन तुमने
दुश्मन के दिल को दहलाया
लख तुमको कुछ को हैरानी
हे विराट पुरुष ! हे महाज्ञानी !!
प्रताप सा ‘देश-धर्म’ तुझ में
शिवा सा ‘धर्म-मर्म’ तुझ में
है कर्मयोग पर विश्वास तुम्हें
पिछले वर्षों से देखा हमने
कुछ समझे कुछ को समझानी
हे विराट पुरुष ! हे महाज्ञानी !!
तुझ में सतयुग तुझ में त्रेता
कलयुग के अच्छे अध्येता
गाली खाते कहते कुछ ना
हो कुशल नीतिज्ञ कुशल नेता
जो हर पल सेवा की ठानी
हे विराट पुरुष ! हे महाज्ञानी !!