नया-पुराना साल, कुछ आशाएं कुछ मलाल
मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
दिन बीते…
बीता मास
खड़ा दरवाजे पर है
एक और नया साल!
कुछ जश्न में हैं डूबे
थिरक भांगड़ा कर रहे
न आगे ना पीछे की सोचें
भले भविष्य में मिले इनको
गच्चे धक्के धोखे!
कुछ यादों में हैं गुमसुम,…
अपनों की तस्वीरों पर
अर्पित करें कुसुम!
साल तो बीत रहा,
बीत ही जाएगा… कुछ पलों में
लेकिन
दे गया है जो टीस वो
सालों रूलाएगा !
भयभीत हो दुबके रहे
घर ही घर में लोग,
गलती से भी ना लगे
किसी को कोरोना रोग!
जिनको लगा वो …
अब ना रहे
दीवारों पर है सजे!
क्या बताऊं सखी
वर्ष 2021 कितनों को है डंसे
कुछ सिखलाया भी है
शारीरिक दूरी, हाथ सफाई
मास्क का पहनना
बिन जरूरत बाहर ना निकलना।
बंद रहे बच्चों के भी स्कूल
बंध घर पर हुए स्थूल!
पठन पाठन लेखनी का हुआ ह्रास
नौनिहालों के भविष्य का हुआ सत्यानाश!
सामाजिक मानसिक विकास हुआ अवरूद्ध
जाने कैसे बन पाएंगे अब ये प्रबुद्ध?
इस नए वर्ष से है विश्व को आस,
मन ही मन मैं भी कर रहा अरदास।
भरपाई हो जाए सबका
हुई है जिनकी क्षति
फिर भविष्य में ना हो जग में
ऐसी दुर्गति!
ऐ बाईस ( 2022 ) !
अपने नाम अनुरूप
कुछ ऐसा लेकर आना
भविष्य में ना देना पड़े
तुझको भी ताना!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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