विश्व हिंदी दिवस और महेश राठौर जन्मदिवस पर विशेष

देवभूमि समाचार

भारत भूमि को वैसे भी ऋषि मुनि और कवियों की भूमि कहाँ जाता है। अगर कवियों के इतिहास पर नजर डालें तो समय-समय पर भारत में अनेक कवि अपनी कविताओं की छाप छोड़ते नजर आए। लेकिन आज हम एक ऐसे अनोखे कवि से मिलवा रहे हैं, जिनके पास अल्प शिक्षा होते हुए और गली गली कपड़े की फेरी करते हुए, आज साहित्य के इस मुकाम पर पहुंचे हैं।

जहां पर पहुंचना हर साहित्यकार का सपना होता है। जी हां हम बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के रहने वाले गांव राजपुर छाजपुर गढी निवासी कवि बंजारा महेश राठौर सोनू, जिनका आज 10 जनवरी को जन्मदिन है। यह एक संयोग ही है कि आज 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है।

बंजारा महेश राठौर सोनू जो की मध्य प्रदेश के रीवा शहर में रहकर गली-गली कपड़ों की फेरी करते हैं और कविताओं का भी लेखन करते हैं। अपनी सरल शब्दों से गुथी कविताओं और आकर्षित करते शब्दों के बल पर महेश राठौर सोनू ने देश के कोने कोने में ही नहीं विदेशों तक अपनी रचनाओं की छाप छोड़ी है।

किसान आंदोलन में भी किसानों के ऊपर रचनाएं रच कर महेश राठौर सोनू ने किसान आंदोलन को जींवत बनाए रखा। सैकड़ों कविताएं किसानों के ऊपर लिखी महेश राठौर सोनू को भारत सरकार द्वारा देश के सभी साहित्य से जुड़ी पंजीकृत संस्थाओं द्वारा सैकड़ों साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

कई उच्च अधिकारियों और केंद्रीय मंत्रियों द्वारा भी इस युवा कवि को सम्मानित किया जा चुका है। महेश राठौर सोनू ने विश्व हिंदी दिवस और अपने जन्मदिन पर कहा है कि यह मलाल उम्र भर रहेगा की आर्थिक स्थिति के कारण अब तक मेरी कोई किताब प्रकाशित नहीं हो सकी। अगर सरकारी सहायता मिलती तो कुछ बात आगे बढ़ सकती थी, लेकिन जनप्रतिनिधियों ने भी इस बारे में कोई विचार नहीं किया जिसका मुझे बहुत अफसोस है।

साहित्य ही मेरी साधना है, हर शब्द मेरी आराधना है।
मैं एक साहित्य साधक हूँ, हिंदी को जन जन तक।
पहुचाना कर्तव्य समझता हूँ।

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