नवरात्रि : अगाध श्रद्धा की जीत का पर्व
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डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
उमा का विवाह अध्ययनरत होने के कारण विलंब से हुआ। विवाह की प्रारम्भिक अवस्था में उमा में कुछ गलत होने पर भी सत्य को उजागर करने की हिम्मत नहीं थी। पारिवारिक कारणों के चलते उमा की गर्भधारण प्रक्रिया भी देरी से हुई, पर इससे बुरा तो तब हुआ जब गर्भधारण करने पर भी वह गर्भपात की कटु मनोवस्था से जूझी।
उमा एक उच्च शिक्षित महिला थी, विज्ञान विषय से संबन्धित होने के कारण प्रायोगिक तथ्य पर बल दिया करती थी, पर उसकी एक और खासियत यह भी थी की वह ईश्वर में अगाध श्रद्धा और विश्वास रखती थी। पुनः गर्भधारण की प्रक्रिया में उसकी सहेली लक्ष्मी ने उसे एक उपाय सुझाया जिसमें आने वाली नवरात्रि में उसे पूर्ण भक्तिभाव से माँ से संतान प्राप्ति की प्रार्थना करनी थी। लक्ष्मी ने बताया कि यदि वह नवरात्रि के दिनों में शक्तिस्वरूपा जगतजननी जगदंबा की गोद भराई करेगी तो शायद उसे शीघ्र गर्भधारण हो जाए।
उमा का पति भी बहुत अच्छे स्वभाव का था, पर उमा को थोड़ा संकोच हो रहा था, लेकिन जब उसने अपने पति के सामने मन की बात रखी तो पति ने ईश आराधना को प्रत्येक स्थिति में सर्वश्रेष्ठ ही बताया। फिर क्या था, उमा ने भावों की पूरी माला के साथ माँ को फल, वस्त्र, मेवा अपनी श्रद्धा अनुरूप अर्पित किए और यह क्या था माँ की मनोभावना तो माँ से बेहतर कोई नहीं समझता। कुछ ही समय पश्चात उमा को सुंदर कन्या की प्राप्ति हुई।
माँ के आशीर्वाद से उनसे कन्या का नाम दुर्गा रखा। उमा नाम स्मरण के महत्व को भी भली भाँति जानती थी इसलिए उसने दुर्गा नाम का चयन किया। आज उमा की माँ दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा की जीत हुई। इस अगाध श्रद्धा से हमें यह सीख मिलती है की ईश्वर की प्रार्थना प्रत्येक स्थिति में परिवर्तन करने में सक्षम है। भगवान तो स्वयं भक्त के अधीन है बस उन्हें कोई पूर्ण निष्ठाभाव से ध्या ले। ईश्वर भी हमारे मातृ-पितृ तुल्य है तो क्यों न अपनी समस्या पूर्ण विश्वास से ईश्वर को सौंप दे और उसके निर्णय को स्थिरप्रज्ञ होकर स्वीकार करें।
प्रेषक : रवि मालपानी, सहायक लेखा अधिकारी, रक्षा मंत्रालय (वित्त) * 9039551172