मन एक मंदिर

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
अगर आपका मन साफ है। उसमें किसी प्रकार का छल कपट नहीं है तो फिर मन ही मंदिर है। आपको किसी धार्मिक स्थल पर जाने की जरूरत नहीं है। जब मन साफ होगा, तभी तो मन में उत्तम क्वालिटी के विचारों का आगमन होगा। जहां मन में बुराइयों का अंबार लगा हो, भला वह मन कैसे एक मंदिर बन सकता है। उसे तो कूड़ादान ही कहा जा सकता है।
जिसका मन पवित्र होता है, वहीं व्यक्ति परोपकारी, सेवाभावी, करूणामय व धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति कहलाता है। अतः व्यक्ति को अपने जीवन में कभी भी अहंकार और घमंड नहीं करना चाहिए। यह इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है। अतः इससे बचकर रहें। व्यक्ति को सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। आपका व्यवहार ही आपकी पहचान है। कहते हैं कि मन गंगा की तरह पवित्र होना चाहिए। मगर हम देख रहे हैं कि लोग पवित्र नदियों, जलाशयों, तालाबों में स्नान करने के बावजूद भी अपने व्यवहार में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं ला रहे हैं तो फिर ऐसे स्नान का क्या औचित्य है।
जब हमें यह मानव जीवन मिला है तो फिर इसे सेवा के काम में लगाइए और निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों की सेवा करें। अगर किसी की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से उसका काम आसान हो जाता है या वह अपने ध्येय या उद्देश्य में सफल हो जाता है तो यह हमारे लिए गर्व एवं गौरव की बात है। बस हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए तभी हम किसी की सेवा कर पाएंगे, अन्यथा यह जीवन यूं ही तेरी-मेरी करते निकल जायेगा और हम कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे।
Nice article
Nice