फीचर

संस्मरण : नवरात्रों के दिन

प्रीति शर्मा “असीम”



आज से ठीक छह महीने पहले ,नए साल के शुभारंभ में जब नवरात्रों का आगमन हुआ वैशाख पर्व पर।सोचा नहीं था…..वैशाख , इस बार जिंदगी की वैशाखियां ही तोड़ने आ रहा है। जिंदगी हर बात से अनजान …मुझे याद है शादी के बाद जब ‘तारादेवी ‘मंदिर जाना हुआ ।जिसकी सेवा असीम जी के दादा जी करते थे। उसके बाद यह कार्य असीम जी और विवेक ने सम्भाला। सारे परिवार की बहुत श्रद्धा थी ।मुझे याद है शादी से पहले मैं तो मंदिर गिनती में ही गई होंगी लेकिन यहां परिवार हर रोज मंदिर जाता था।

मैं तो कभी -कभार ही मंदिर जाती थी लेकिन जब भी जाती थी । वहां की साफ -सफाई माता के दुपट्टे सेट करके आती । शुरू-शुरू में इन्होंने रोका कि ऐसे ही मूर्ति को छूते नहीं है लेकिन धीरे-धीरे मेरा माता को सजाना देखकर इन्होंने कभी मना नहीं किया। धीरे-धीरे मैंने माता की ड्रेस (चोला ) भी बनानी शुरू कर दी। मुझे इतनी सिलाई वगैरा तो नहीं आती थी ,क्योंकि नाइंथ क्लास के बाद इस लोजिक पर कि लड़कियों को सिलाई आनी चाहिए मम्मी के कहने पर मैंने एक महीना सिलाई सीखी थी। बिना नाप के मंदिर की हर मूर्ति और माता की मूर्ति का ड्रेस (चोला ) बना देती थी।

हर बार कुछ नया डिजाइन बन जाता है। बहुत सुंदर श्रृंगार है ….माता का ।सब कहते थे और मुझे भी बहुत गर्व महसूस होता था कि मुझे माता का सिंगार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

मंदिर में मुझसे पहले परिवार की किसी भी बहू या बेटी ने कभी माता के श्रृंगार की पहल नहीं की थी ।सिर्फ मंदिर में मैं ही माता का श्रृंगार और चोला बना कर चढ़ा आती ।अगर किसी और ने भी चढ़ाना होता तो उसका चोला भी मैं ही सिल कर चढ़ाती। सिलसिला लगातार कई सालों तक जारी रहा 2021 तक ।2021 के नवरात्रों तक नवरात्रों की ड्रेस असीम जी या कभी मैं अपनी पसंद की ले कर आते माता के श्रृंगार का सामान लेकर आती ।एक उत्सव- सा माहौल बन जाता था।

घर औंर मंदिर का कोई अंतर नहीं था।सब कुछ माता थी।उसे हर तकलीफ सुनाने के बाद लगता था कि वो जल्द ही सब ठीक कर देगी।
नवरात्रों के आने पर इस बार…………… पिछले नवरात्रे असीम जी की तबीयत ठीक नहीं थी ।नवरात्रों से पहले माता का श्रृंगार होना था मैं माता का श्रृंगार करने गई।मन बहुत उदास था असीम जी की तबीयत खराब थी उनकी तबीयत को देखते हुए मैं दो घंटे में ही माता का श्रृंगार करके आ गई थी और माता से प्रार्थना की थी कि …. मेरे सिंदूर की रक्षा करना।असीम जी को ठीक कर दो। क्योंकि बुखार आना कोई बड़ी बात नहीं थी और कोरोना इतना बड़ा रूप धर कर हमारी जिंदगी को बदल देगा यह …….? हमने नहीं सोचा था।



बहुत विश्वास था हमारे साथ कुछ गलत नहीं हो सकता । सारे परिवार को मंदिरों की ही सोच लगी रहती थी ।इतना ज्यादा पूजा-पाठ…….. लॉकडाउन में पूजा पाठ की अवधि तो 2:00 बजे तक हो गई थी ।कई बार मुझे गुस्सा आ जाता था कि असीम जी इतनी देर क्यों लगाते हैं खाना क्यों नहीं खा रहे लेकिन इन पर कोई असर नहीं ।पूरा करेंगे अपना रूटीन।उसके बाद फिर मंदिर जाने को तैयार हो जाएंगे ।बस मंदिर -मंदिर …….पूजा पाठ यही रूटीन था। यह …सब कहते थे कि बस भगवान ही एक सहारा होता है ।उस समय तक मुझे भी लगता था जब मम्मी हर धार्मिक पर्व पर पंडितों को बुला -बुला कर घर पर खाना खिलाते। मंदिरों की सेवा….. कहते थे वह भाग्यशाली होते हैं जो करते हैं । कहाँ…… गया भाग्य ….जो कहते थे आप सब बहुत भाग्यशाली जो माता के चरणों के साथ लगे है ।इतना पुण्य मिल रहा है ।इतनी दुआएं लगेगी।सब यज्ञ हवन का फल ।लेकिन…..?????????? कोई दुआ नहीं लगी यहां तक की माता तारादेवी जी ने भी आशीर्वाद नहीं दिया। बस एक अंधविश्वास में जी रहे थे । सिर्फ पत्थरों को पूज रहे थे।

असीम जी के साथ ,सिर्फ जब भी गए मंदिरों में गए।अनगिनत शक्ति स्थलों पर गए माता की चुनरी मिलती थी तो लगता था दुनिया की सबसे कीमती चीज आपको मिल गई है ।आपका श्रृंगार बना रहे का आशीर्वाद…….आज…. झूठ अंधविश्वास नजर आता है।
कितनी अजीब बात है कि आपको कोई भी आशीर्वाद नहीं लगा……. कोई दुआ नहीं लगी और आपने जो सेवा अपना फर्ज समझकर की थी उसका भी कोई मूल्य नहीं था। नवरात्रि से पहले असीम जी ने माता का चोला पसंद किया था। लेकिन उस वक्त तबीयत ठीक ना होने की वजह से और घर के काम की वजह से मेरे से बन नहीं पाया था। बाद में जब असीम जी और मम्मी के साथ ऐसा हुआ तो विश्वास नहीं …… मन ने चोला बनाने से इंकार कर दिया लेकिन एक याद जुड़ी होने की वजह से मैंने उसे संभाल के रख दिया क्योंकि …यह आखिरी चोला था जो असीम जी ने पसंद किया था।



इस सब के बाद मैंने सोच लिया था……… कि अब ना कभी असीम जी के बिना न कभी किसी मंदिर जाऊंगी। न ही माता का श्रृंगार करने जाऊंगी । लेकिन इस नवरात्रि में विवेक के पूछे जाने पर कि वह चोला कहां है मैंने निकाल कर दिया ।जब मौके पर किसी ने नहीं बन पडा तो मैंने बनाया …..मन उदास था ।स्थितियां बदल चुकी थीं।जो चोला चांव और खुशी से बना करता था। आज मां से सवाल करते रो रहा था।क्यों बना रही हो…?? यही इच्छा है समय की मैंने चोला बना के विवेक को दे दिया अब माता का श्रृंगार वही करता है मुझे याद है जब भी बाजार जाती तो कुछ ना कुछ माता की पूजा का सामान लेकर ही आती कि ऐसा अच्छा लगेगा वैसा अच्छा लगेगा। लेकिन सब एक ही झटके में खत्म हो गया आज नवरात्रे समाप्त होने को है। नवरात्रों में असंख्य कंजकों के पांव धोने याद आ रहे है।कोई आशीर्वाद ……फला ही नही हम इतने किस्मत वाले थे।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights