साहित्य लहर
पहले मन का रावण मारें

भुवन बिष्ट
मिलकर आओ हम सब जग को संवारें,
पहले हम अपने अंदर का रावण मारें।
राग द्वेष लोभ हैं क्रोध मोह व्यभाचार,
मन में बसे ईष्या तृष्णा लूट भ्रष्टाचार।
व्याप्त हर मन में भी दशानन के अवतार,
बनो सब राम पहले मन से इन्हें दो मार।
हम करें दहन छिपा है मन में जो दशानन।
ऊंच नीच जाति भेद रागद्वेष का करें पतन।
आओ हर मन मानवता की ज्योति जलायें,
हृदय में बसे दशानन को पहले हम भगायें।
पवित्रता नैतिकता की बहे सच्चे मन से धार,
सुख की फसलें लहरायेंगीं पावन बने संसार।
सच्चे मन से जीतें क्यों झूठ से हम हारें,
पहले हम अपने अंदर का रावण मारें।