शिक्षाप्रद लघुकथा : स्वाभिमान
डॉ. कविता नन्दन
दोपहर ही बीती थी कि घर पर मेहमान आ गए और मुझे मज़बूर हो कर समोसे लेने के लिए घर से निकलना ही पड़ा। पार्टी कार्यालय घर से एक सौ सात मीटर की दूरी पर ही है और काली घटा स्वीट हाऊस कार के मीटर से ठीक तीन सौ दो।
यह दोनों ही मेरे लिए ऐसी अशुभ गिनती है कि जब-जब यहाँ रुका हूँ, मुझे थाने के चक्कर लगाने पड़ते हैं। दस साल पहले तो यहाँ पार्टी कार्यालय ही था और उसके बाद मेरा घर, इन दो बिल्डिंग के अलावा आधे किलोमीटर की रेंज में कोई दूसरा मकान नहीं; तब रास्ता भी दूसरा ही था। तब हमारे घर से कार्यालय की दूरी नेट पचास कदम पाँव से गिन कर होती थी लेकिन वह कामिनी जैसे ही पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के यहाँ बसी, यह सन्नाटे वाला इलाका घनी बस्ती में तब्दील हो गया।
मेरे ही हॉस्पीटल में वह भी थी बस हमारे बीच की दूरी ऐसी दीवार की थी जिसमें एक खिड़की थी। मैं आर्थोपेडिक का डॉक्टर था और वह साइकोलॉजिस्ट। हम दोनों एक ही इंस्टीट्यूट से आए थे और एक ही साथ ज्वॉइन किए लेकिन समय के साथ-साथ हमारे बीच तनाव बढ़ता गया।
वे सभी मेल पेसेंट जो मुझे दिखाने आते, दो-चार चक्कर काटने के बाद उसके पेसेंट हो जाते। मैं उन्हें रेस्ट की सलाह देता और वह उन्हें घूमने-फिरने का आइडिया…यहीं से हमारे बीच कहा-सुनी शुरू होती और तनाव बढ़ जाता। मेरे अच्छे-भले पेसेंट उसकी साइकोथेरेपी लेते और लंबे समय तक मानसिक बीमार होने का ढोंग करते। कई अच्छे पैसे वाले तो एडमिट होकर दूसरे मरीजों से मेरे बारे में कहते “साइको है। इतनी ख़ूबसूरत डॉक्टर से लड़ता है।”
नतीजा यह हुआ कि मैं पूरे इलाके में एक ऐसे डॉक्टर के रूप में पहचाना जाने लगा जो कि साइको था। पांच साल की नौकरी करने के बाद सीएमओ ने मेरी रिपोर्ट बनाई जो यह सिद्ध करती थी कि मैं मानसिक रूप से बीमार हूँ।…और बाद के दिनों में मैं नौकरी से निकाल दिया गया। नौकरी छूटने के बाद ही मैंने पार्टी ज्वॉइन किया। कामिनी हमदर्दी में मेरा हालचाल लेने आती और अक्सर ही बाद के दिनों में मै उन्हें कार्यालय में ही मिल जाता और इस तरह वह पार्टी की सदस्या बन गई…नहीं-नहीं पार्टी के होलटाइमर लफंगों की भीड़ के मद्देनजर श्यामशरण जी ने सदस्यता ग्रहण करवाई थी। उस दिन से अब तक मैं प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा हूँ और जिस दिन भी कार्यालय में हम दोनों पहुँच जाते हैं किसी-न-किसी की पिटाई हो जाती है और थाने तक जाना पड़ता है।
सुबह ही अख़बार में पढ़ा कि कामिनी को पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की घोषणा हुई है। आज सुबह से ही वह कार्यालय में है। इसीलिए मैंने घर में कह दिया था कि “आज घर से बाहर नहीं निकलूँगा ” लेकिन इन समोसाप्रेमी मेहमानों का बुरा हो जो प्रणभंग करने चले आए। अभी पिछले सप्ताह ही काली घटा स्वीट हाऊस के सामने गोली चली थी और बदकिस्मती से मैं वहाँ रसगुल्ला लेने गया था। थाने में रातभर मुझसे पूछताछ हुई। मेरा दोष बस इतना था कि गोली चलाने वाले की बीवी मेरी पेसेंट थी।
मैं समोसे लेकर लौट रहा था। कार्यालय के दरवाज़े पर जैसे ही पहुँचा किसी के तमाचे की “चटाक” से आवाज़ सुनाई दी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं अंदर घुस गया। गाल पर हाथ रखे हुए श्यामशरण जी कुर्सी पर बैठे थे और उनके सामने कामिनी अपनी दहकती आँखों के साथ गुर्रा रही थी। बाकी सभी लोग खड़े थे। मैंने पूछा “क्या हुआ ?” शरणजी बोले “तुम्हारा टिकट कैंसिल।” कामिनी ने दूसरा थप्पड़ उनके गाल पर जड़ दिया। श्यामशरण जी आगबबूला हो गए।
चीखते हुए बोले “तुम्हें इतना घमंड है, मैं तुम्हारा घमंड उतार दूँगा। तुम्हें इतना बदनाम कर दूँगा, इतना बदनाम कर दूँगा कि…देखता हूँ तुम चुनाव कैसे लड़ती हो !” कामिनी ने लगभग दहाड़ते हुए कहा “मैं नहीं जानती थी कि तू इतना कमीना है। मैं इज़्ज़त बेच कर चुनाव नहीं लड़ूँगी। मेरा भी नाम तेजस्विनी है देखती हूँ चुनाव लड़ने से तू कैसे रोक लेता है। मैं अब निर्दल चुनाव लडूँगी और जीत कर दिखाती हूँ।” मैंने पूछा “आख़िर हुआ क्या है?” कामिनी ने प्रतिशोध भरे स्वर में कहा “यह कुत्ता कहता है कि मैंने आपको टिकट दे कर ख़ुश किया है अब आपकी बारी है। इसे बेडरूम पार्टी चाहिए।” इतना सुनते मुझे जैसे आग लग गई। मैंने समोसा टेबल पर दे मारा और उसके बाद तो श्यामशरण जी ज़मीन पर और मैं उनके सीने पर…पुलिस तो आनी ही थी, सो आई।
बात अब नाक पर ले चुके नेता जी ने अपमान का बदला लेने का पूरा मन बना लिया। बीसियों कार्यकर्ताओं के सामने एक लौंडिया के हाथ से थप्पड़ खाना उन्हें न जीने लायक छोड़ा, न मरने लायक। रातों-रात श्यामशरण जी अपने पहचान वाले पत्रकारों को बुलाकर तेजस्विनी को बदनाम करने का षडयंत्र शुरू कर चुके थे। घटिया पत्रकारिता की फूहड़पन से पटे अख़बारों को देखकर मुझे खिन्नता हुई।
सुबह अख़बारों के लोगों तक पहुँचते-पहुँचते टीवी चैनल वालों की भीड़ घोषित उम्मीदवार के दरवाज़े पर पहुँच गई थी। अब तक उन चश्मदीदों को भी सूचना मिल गई जो पिछली शाम कार्यालय में थे, वे सभी बड़ी भीड़ के साथ तेजस्विनी के घर पहुँच गए। तेजस्विनी के सच के साथ हजारों की भीड़ खड़ी हो गई और देखते-देखते पासा पलट चुका था। पूरा शहर तेजस्विनी के साथ हो गया। ‘संध्या समाचार’ की हेडलाइन “महिला स्वाभिमान के विरुद्ध राजनीति” पढ़कर तसल्ली हुई कि सत्य को न्याय मिला।
मैंने खिड़की से झांककर देखा। बाहर ढोल बज रहे हैं और समर्थकों की भीड़ के साथ तेजस्विनी फूलमाला से लदी दरवाज़े पर खड़ी है। मैं उसका स्वागत करने हाथ जोड़े बाहर आया तो उसने कहा “डॉक्टर! राजनीति के कीचड़ में घुस तो गई हूँ लेकिन बदनाम नहीं होऊँगी…” और उसने अपने दोनों होंठ भींच लिए। लोगो की भीड़ जमकर नारे लगा रही थी “डॉ. तेजस्विनी ज़िंदाबाद…” नारे लगाने वालों में वह भी शामिल थे जो श्यामशरण जी की पिटाई के गवाह थे।