स्वर्ग और मोक्ष
परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन दिया हैं जो बडा ही सुन्दर हैं। अतः जीवन को आनंद के साथ जीएं। जीवन की बगिया में दया, ममता, प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, करूणा, धैर्य, सहनशीलता, परोपकार, त्याग के सुन्दर – सुन्दर पुष्प खिलाएं जिसकी खुशबू देश व दुनियां में फैलें। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
मन की पवित्रता ही स्वर्ग और मोक्ष हैं। इसलिए जीवन में कभी भी झूठ का सहारा न लें और न ही किसी को परेशान करने का प्रयास करें। चूंकि हमें हमेंशा सत्य और न्याय के पथ पर चलना चाहिए। जो ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करता हैं, उसे जीवन में भले ही कठिनाइयों का सामना करना पडे, लेकिन आखिर में जीत उसी की होती हैं। सत्य पर चलने वालों को भले ही जीवन में नाना प्रकार की परेशानियां झेलनी पडे, मगर असल में वे लोग ही राष्ट्र के सजग, कर्मठ और सच्चे पथ प्रदर्शक एवं देशभक्त होते हैं जिनके मन में किसी भी प्रकार का कोई छल कपट नहीं होता है और परोपकार के कार्य करना ही उनका ध्येय होता हैं न कि मान सम्मान पाना। ऐसे व्यक्तियों का जीवन निर्मल होता हैं और उनके मन की पवित्रता ही स्वर्ग और मोक्ष हैं।
जीने के तरीके – जीवन जीने के अनेक तरीके हैं और हर कोई अपने तरीके से जीवन व्यतीत करता हैं। चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, जहां सभी को अपने तरीके से रहने, खाने पीने की स्वतंत्रता है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम अपनी मान मर्यादाओं को ही भूल जायें। जीने के तरीके से तात्पर्य यह है कि हम ऐसा जीवन जीएं जिससे हमें संतुष्टि मिले, मगर किसी दूसरों को हमारे तरीके से किसी भी प्रकार की कोई परेशानी या तकलीफ न हो।
प्रभु हमारे मन की बात समझते हैं – हम जैसे भी हैं वैसे ही ठीक हैं। चूंकि हम प्रभु की कृपा से ही यह जीवन जी रहे हैं। उनका हम पर हर वक्त आशीर्वाद बना रहना चाहिए। मगर इंसान हर वक्त ईश्वर से भिखारी की तरह कुछ न कुछ मांगता ही रहता हैं। एक इच्छा पूरी भी नहीं हो पाती हैं कि दूसरी इच्छा पूर्ति करने की मांग करने लगता हैं। वह यह भूल जाता हैं कि हमारे पास जो कुछ भी हैं वह उस परमपिता परमात्मा की ही देन है जिसके लिए हम कभी उनका आभार तो प्रकट करते नहीं है और हर वक्त उस परमपिता के समक्ष झोली फैलाए ही रहते हैं जबकि उसे सब पता है कि किसको कब क्या और कितना देंना हैं। चूंकि वे हमारे मन की बात, उलझन, लालसा सब कुछ जानते हैं फिर हर रोज क्यों उस परमपिता परमेश्वर को परेशान करते हो।
आरे भाई ! हमें यह मानव जीवन तो ईश्वर की भक्ति करने को मिला हैं। वह तो हम करते नहीं लेकिन मांगने में कभी चुकते नहीं हैं। यह कैसी विडम्बना है। अतः ईश्वर की भक्ति में मन लगाइये और जीवन में खुशहाली लाइयें। हमारे जीवन में दुःख का मूल कारण हमारी बढती लालसाएं और ईच्छाएं हैं जो कभी भी पूरी नहीं होती हैं। एक पूरी भी नही हो पाती हैं कि दूसरी जागृत हो जाती हैं। इसलिए इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखें। तभी सुख चैन की नींद सो पियेगें।
अमूल्य धन – हमारा व्यवहार ही हमारा अमूल्य धन हैं। इसलिए अपने व्यवहार को कभी भी न बिगाडें और सभी के साथ प्रेम व स्नेह बनाए रखें। सभी के साथ अच्छा व्यवहार करे। जैसा व्यवहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ कीजिए। इसलिए जीवन में व्यवहार कुशल बनें। कहते है कि पैसा किसी के पास ठहरता नहीं हैं, चूंकि लक्ष्मी चलायमान है। मगर किसी के साथ मधुर संबंध बनायें रखना तो हमारे हाथ में हैं फिर मधुर व्यवहार बनाने में कंजूसी क्यों ?
जीवन जीना भी एक कला हैं – परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन दिया हैं जो बडा ही सुन्दर हैं। अतः जीवन को आनंद के साथ जीएं। जीवन की बगिया में दया, ममता, प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, करूणा, धैर्य, सहनशीलता, परोपकार, त्याग के सुन्दर – सुन्दर पुष्प खिलाएं जिसकी खुशबू देश व दुनियां में फैलें। तभी जीवन व्यतीत करने का मजा हैं। वैसे भी आदर्श जीवन जीना भी एक कला हैं और जिसने इस कला को सीख लिया उसका जीवन धन्य हो गया। अतः जीवन में सदैव हंसते मुस्कुराते रहे एवं स्वस्थ और मस्त रहें।
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