साहित्य लहर
बढ़ती आबादी

सुनील कुमार
बढ़ती आबादी देखकर
धरा ये थर-थर कांप रही
देखो-देखो आबादी ये
तेज कितना भाग रही।
सोच रही है धरा ये
दुनिया बात क्यों न मान रही
तेजी से बढ़ती आबादी को
क्यों न यह थाम रही।
सोचो-सोचो कुछ तो सोचों
तेजी से बढ़ती आबादी का
कुछ तो हल खोजो।
दिन ब दिन ऐसे ही
आबादी बढ़ती जाएगी
पेट भरने को दुनिया
अन्न कहां उगाएगी
जीवित रहने को ये
प्राणवायु कहां से लाएगी।
चेतो-चेतो अब तो चेतो
नहीं देर बहुत हो जाएगी
यही हाल रहा जो बढ़ती आबादी का
स्वर्ग से सुंदर धरा मिट जाएगी।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमारलेखक एवं कविAddress »ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, जिला : बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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