साहित्य लहर

गजल : नहीं समझता

सिद्धार्थ गोरखपुरी

वक्त कभी हालात नहीं समझता
इश्क! मजहब, उमर, जात नहीं समझता

खुदा की नजर में तो सब हैं एक जैसे
वो खुद के आगे किसी की औकात नहीं समझता

जिन्दगी में सब कुछ पराया ही तो है
तूँ सिरफ़ इतनी सी बात नहीं समझता

ये जो मिट्टी है, इसी में मिल जाना है एक रोज
वक्त कभी भी किसी के जज्बात नहीं समझता

धूल को महज कुछ देर ही दबा सकती है बारिश
तेज बरसात को भी ये बरसात नहीं समझता

जो आया है वो जाएगा ये तय है रब से
फिर क्यों हयात को हयात नहीं समझता

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights