क्या से क्या हो गए
सुनील कुमार
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए
कल तक थे जो अपने
आज पराए हो गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
भूल गए हम पालनहारों को
सीमित बीवी-बच्चों तक हो गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
संग बचपन में जिनके खेले
सुख-दु:ख सब मिलकर झेले
आज दूर उनसे हम हो गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
धन-दौलत के खातिर
आपस में हम लड़ गए
रिश्ते-नाते सब प्यार के
स्वार्थ की भेंट चढ़ गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
टूटी जब संस्कारों की माला
मानस मोती सब बिखर गए
घर-घर में अब रावण बैठे
राम वन को निकल गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
मां-बाप वृद्धा आश्रम में भेजे
बच्चे केयर टेकर को सौंपे
खुद भोग-विलास में खो गए
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या से क्या हम हो गए।
कहने को तो हम आधुनिक हो गए
पर रिश्ते-नाते प्यार के खो गए।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमारलेखक एवं कविAddress »ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, जिला : बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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