अनन्त हैं इच्छाएं

सुनील कुमार माथुर

इच्छाएं अनन्त हैं । यह कभी भी पूरी नहीं होती हैं । एक पूरी भी नहीं हो पाती हैं कि दूसरी इच्छा जागृत हो जाती हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि इच्छाएं हर पल बढती ही जाती हैं जैसे वृक्ष की जडे बढती जाती हैं , वैसे ही इच्छाएं भी बढती जाती हैं । अतः इच्छाओं पर कंट्रोल कीजिए और जीवन में खुशहाली लाईये । जिसकी इच्छाएं सीमित होती है वह व्यक्ति उतना ही सुखी रहता हैं । आपके पास जो कुछ भी हैं बस उसी में संतोष कीजिए ।

इच्छाएं तो महलों में रहने वालों की भी पूरी नहीं होती हैं तो फिर हम तो ठहरे साधारण आदमी । इच्छाओं को सीमित रखें , स्वस्थ रहें और मस्त रहें । इसी में जीवन जीने का सार हैं । मेहनत – मजदूरी से कमाई गई राशि से दो वक्त की रोटी भर पेट मिल जाये और दैनिक जरूरतों की रोज की रोज पूर्ति हो जाये फिर भला इससे अधिक क्या चाहिए ।

इच्छाओं का कभी भी अंत नहीं होता हैं । ये तो द्रौपदी के चीर की भांति बढती ही जाती हैं । एक पूरी हुई नहीं की दूसरी मुंह बायें खडी हैं । अतः व्यक्ति को अपनी इच्छाओं को सीमित करना सीखना चाहिए और कभी भी इच्छाओं को बिना वजह न बढायें । हमारी इच्छाएं ही हमारे दुःख का कारण होती हैं । जब वे पूरी नहीं होती हैं तब व्यक्ति हताश व निराश हो जाता हैं ।

जब इच्छाएं जरूरत से ज्यादा बढ जाती हैं तब फिर व्यक्ति उन्हें पूरा करने के लिए गलत राह अपनाता हैं और इसके लिए वह चोरियां करता हैं । रिश्वत लेता हैं और लूटपाट करता हैं । कभी-कभी तो वह राष्ट्र की गरिमा को भी दांव पर लगा देता हैं चूंकि उस वक्त उस पर इच्छाएं इतनी हाॅवी हो जातीहैं कि वह क्या अच्छा हैं और क्या बुरा हैं यह सब ताक पर रख देता हैं जो उचित नहीं है । अतः सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए अपनी इच्छाओं को सीमित कीजिए।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

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33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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