कविता : यादों की गलियों में
यादों की गलियों में, कभी रूठना कभी मनाना, अम्मा-बाबू से जिद मनवाना, दिल भूल नहीं पाता है, यादों की गलियों में जब दिल जाता है। खुद खाने से पहले मुझे खिलाना, रूठूं तो पल भर में मनाना, बहराइच, उत्तर प्रदेश से सुनील कुमार की कलम से…
यादों की गलियों में जब दिल जाता है
बहुत कुछ याद आ जाता है।
अम्मा की लोरी दोस्तों संग हंसी-ठिठोली
सब कुछ याद आ जाता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
गुड्डा-गुड़ियों संग खेल सुहाने
भूले-बिसरे कुछ गीत पुराने
मन ही मन गुनगुनाता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
कभी रूठना कभी मनाना
अम्मा-बाबू से जिद मनवाना
दिल भूल नहीं पाता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
खुद खाने से पहले मुझे खिलाना
रूठूं तो पल भर में मनाना
मां का वो प्यार याद आता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
एक-दूजे के सुख-दु:ख में काम आना
मिल-जुलकर तीज-त्योहार मनाना
सहज ही याद आ जाता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
बंद करता हूं जब भी पलकें
हर मंजर हसीं नजर आता है
बीता हुआ हर इक लम्हा
कभी खुशी-कभी गम दे जाता है
यादों की गलियों में जब दिल जाता है।
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