राजनीति

निगरानी रखी जाए आनंद मोहन, अनंत सिंह और पप्पू यादव

आनंद मोहन भी इसी दौरान नेता के रूप में उभरे और पहली बार 1984 की कांग्रेस लहर में सहरसा लोक सभा क्षेत्र से चन्द्र किशोर पाठक के हाथों लाखों वोट से पराजित हो गये थे। उस समय बिहार में आज का जातिवाद नहीं था और जगन्नाथ मिश्र की सरकार सच्चे अर्थों में बिहार के जनमानस की प्रतिनिधि सरकार कही जा सकती है। #राजीव कुमार झा

बिहार का मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में आनंद मोहन ने खूब दुख तकलीफ़ झेला और बिहार पीपुल्स पार्टी भी इस दौरान खत्म हो गयी। आनंद मोहन की राजनीति में बिहार के बाहुबली राजनीतिक नेता बनने लगे थे और लखीसराय के खुटहा के खिक्खर सरदार ने भी बड़हिया पुलिस के द्वारा गिरफ्तारी के बाद हवालात के भीतर सीकचों के पार से पत्रकारों के पूछे प्रश्नों के जवाब में आनंद मोहन को अपना राजनीतिक गुरु बताया था और एक तरह से चुनाव लड़ने का संकेत किया था।

बड़हिया के टिक्कर सिंह भी चकाई विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर समाज में अपनी छवि बदलने की चेष्टाओं में जुटे थे और सीधे सादे गरीब निहत्थे नेता चुनावी राजनीति से अलग हो रहे थे। सूरजभान, राजन तिवारी इन सारे नेताओं को बाहुबली कहा जाता है। बिहार में लालू प्रसाद के शासन की शुरुआत में ही माहौल काफी खराब हो गया था और बाहुबलियों में मुख्य रूप से ऊंची जाति के लोग शामिल थे। पप्पू यादव ने लालू प्रसाद को मंडल कमीशन को लेकर समर्थन दिया था।

शायद उनकी पार्टी में भी इस दौरान पप्पू यादव शामिल रहे। आनंद मोहन ने इसी दौर में ऊंची जाति के बाहुबलियों के सहारे बिहार की राजनीति का कायापलट करने का निश्चय किया था और वे इसमें प्राणप्रण से जुटे हुए थे तभी जी कृष्णैया हत्याकांड में नामजद होने के बाद सारी तस्वीर बदल गयी। बाद में राजनीति को अपराध से दूर करने के लिए चुनाव सुधार कानून लागू हुए लेकिन अभी भी बिहार में बाहुबली चुनाव में दिलचस्पी लेते हैं और इनकी हैसियत के अनुरूप राजनीति दल इनको समर्थन देते हैं।

आज बिहार में यहां के तीनों बाहुबली आनन्द मोहन, अनंत सिंह और पप्पू यादव जब जेल से बाहर हैं तो आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर इन लोगों की गतिविधियों पर सरकार के द्वारा निगरानी जरूरी है। जेल से आने के बाद मीडिया से भी इन लोगों को दूर रखा जाए और इन लोगों को आराम से पटना में रहने के लिए कहा जाए क्योंकि राजनीतिक दलों के साथ इन लोगों का विचार विमर्श हो रहा है।

आनंद मोहन ने पचगछिया में अपने पिता और पितामह की प्रतिमा स्थापित करवाई है। अनंत सिंह भी अपने भ्राता की स्मृति में कुछ स्मारक वगैरह बनवाएं और सारे इलाके के लोगों को लदमा बुलाकर सबका आवभगत करें। पप्पू यादव भी ऐसे कुछ कार्यों के बारे में सोचें। पप्पू यादव बिहार में कांग्रेसी सरकार के जमाने के नेताओं में हैं।

आनंद मोहन भी इसी दौरान नेता के रूप में उभरे और पहली बार 1984 की कांग्रेस लहर में सहरसा लोक सभा क्षेत्र से चन्द्र किशोर पाठक के हाथों लाखों वोट से पराजित हो गये थे। उस समय बिहार में आज का जातिवाद नहीं था और जगन्नाथ मिश्र की सरकार सच्चे अर्थों में बिहार के जनमानस की प्रतिनिधि सरकार कही जा सकती है। उसमें भूमिहार राजपूत ब्राह्मण मुसलमान बनिया तेली सारे लोग मंत्री विधायक होते थे और ब्राह्मण को अपना नेता मानते थे।


👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights