आओ मां

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प्रेम बजाज

हाथ जोड़ करूं मैं विनती मां, आओ मेरे अंगना,
नैनों की ज्योति दिल का आसन बनाऊं, आओ मां तुम्हारा सिंहासन लगाऊं।

ध्वजा, पताका, तोरण, बंदनवार से मैं घर को सजाऊं, धूप अगरबत्ती जला, फूलों के हार पहनाऊं।

भजन-कीर्तन करते आनंदपूर्वक दिन बिताऊं,
आओ मां तुम्हारा सिंहासन लगाऊं।

रोली का मैं टीका लगाऊं, लाल चुनरिया तुझे ओढ़ाऊं,
तेरे नवरूपों को ध्याऊं, हलवा-पूरी का भोग लगाऊं।

कन्यायों को भोजन कराऊं, तेरी महिमा सदा मैं गाऊं।

दुर्गा सप्तशती का पाठ और रामायण गा के सुनाऊं,
भूल कर हर किसी से कटुता का भाव, सबको प्रेम से गले लगाऊं,
आओ मां तुम्हारा सिंहासन लगाऊं।

शंख, चक्रधर, गंदा, पद्म रंगोली से स्वास्तिक बनाऊं, आओ जगदम्बे, जगजननी पधारो मां,
मेरे अन्दर के काम, क्रोध, अहम रूपी राक्षस को संहारो मां,
सद्बुधि का ज्ञान दो , मोक्ष का वरदान दो।

सदा भंडारे मेरे भरती रहो, कृपा हम पर करती रहो,
ममता की तु मूरत मां, दया की सूरत मां, शक्ति का मैं भी तुझसे वरदान पाऊं,
आओ मां तुम्हारा सिंहासन लगाऊं।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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From »

प्रेम बजाज

लेखिका एवं कवयित्री

Address »
जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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