संस्कृत साहित्य का आदिकवि वाल्मीकि
संस्कृत साहित्य का आदिकवि वाल्मीकि… रत्नाकर दस्युओं का सरदार बने थे। देवर्षि नारद की प्रेरणा से रत्नाकर द्वारा ब्रह्मा जी की उपासना में तल्लीनता और दस्युओं के सरदार से मुक्त हुए थे। ब्राह्मण रत्नाकर द्वारा ब्रह्मा जी उपासना करने के दौरान रत्नाकर का शरीर बाल्मी अर्थात दीमकयुक्त हो गया था। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
संस्कृत साहित्य का का आदिकवि वाल्मीकि की रामायण की प्रसिद्ध रचना हैं। वाल्मीकि रामायण महाकाव्य में भगवान श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि को रत्नाकर, आदिकवि, महर्षि, ब्रह्मर्षि, योगर्षि कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि की रचनाओं में रामायण, योगवासिष्ठ, अक्षर-लक्ष्य है। ऋषि प्रचेता के पुत्र रत्नाकर का जन्म आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा व8वैवस्वत मन्वंतर त्रेतायुग में चम्पारण्य में हुआ था। ऋषि प्रचेता के पुत्र रत्नाकर क्रौंच पक्षी के जोड़े प्रेमालाप करने के दौरान निहार रहे थे। करक्रोंच के प्रेमालाप के दौरान नर पक्षी का वध रत्नाकर द्वारा कर दिया। मादा पक्षी विलाप करने लगी।
क्रोंच के विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा से द्रवित अवस्था में रत्नाकर के मुख से स्वतः श्लोक मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥ अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे वियोग झेलना पड़ेगा। प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण में सात सर्ग,,48 हजार शब्दों के यक्त 24 हजार श्लोकों वाली “वाल्मीकि रामायण” में वाल्मीकि द्वारा अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया गया है। ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या महर्षि वाल्मीकि जी ने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की गई थी। वनवास काल के दौरान भगवान”श्रीराम” वाल्मीकि के आश्रम में गये थे।
भगवान वाल्मीकि को “श्रीराम” के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है। रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था “तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा।” अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं द्रौपदी यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना आवश्यक परन्तु भगवान कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर यज्ञ सफल नहीं होता लेकिन कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। वाल्मीकि वहाँ प्रकट होने के बाद शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है “सुपच रूप धार सतगुरु आए। पाण्डवो के यज्ञ में शंख बजाए।
भविष्य एवं शिक्षा के अधिकार का मूर्त रूप है पुस्तकालय
स्मृतियों, स्कन्द पुराण नगर खण्ड, मुखारतीर्थ, लोह जंघा, विष्णु धर्मोत्तर पुराण और मनुस्मृति के अनुसार ऋषि कश्यप की भार्या माता अदिति के 9 वें पुत्र वरुण ( प्रचेता ) आदित्य की पत्नी चर्ष्णि के गर्भ से रत्नाकर का जन्म विदेह राज्य का चम्पारण्य स्थित गंडक नदी की उप नदी रैया किनारे लालभीतिया स्थित ब्राह्मण ऋषि प्रचेता आश्रम में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा त्रेतायुग वैवश्वत मन्वंतर में हुआ था। ऋषि प्रचेता नंदन रत्नाकर को चम्पारण्य के जंगल में भटकने के कारण बाल्यकाल में भील द्वारा पालन पोषण किया गया था। भीलों ने रत्नाकर को नाग नामकरण किया था।
रत्नाकर दस्युओं का सरदार बने थे। देवर्षि नारद की प्रेरणा से रत्नाकर द्वारा ब्रह्मा जी की उपासना में तल्लीनता और दस्युओं के सरदार से मुक्त हुए थे। ब्राह्मण रत्नाकर द्वारा ब्रह्मा जी उपासना करने के दौरान रत्नाकर का शरीर बाल्मी अर्थात दीमकयुक्त हो गया था। रत्नाकर की भक्ति से ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर रत्नाकर का शरीर को कंचन बनाकर वाल्मीकि नामकरण किया था। रत्नाकर से वाल्मीकि बनकर रामायण की रचना की थी। ब्रह्मा जी की पत्नी वीरणी के पुत्र भृगु ऋषि की भार्या दिव्या से शुक्राचार्य और त्वष्टा, पौलमी से ऋचीक, च्यवन और पुत्री रेणुका से प्रचेता का जन्म हुआ था।
प्रचेता की पत्नी चर्ष्णि से रत्नाकर का जन्म हुआ था। रत्नाकर के पिता प्रचेता ऋषि द्वारा प्रचेतस आश्रम में जंगलों और पर्वतों के निवासियों में भील, निषाद,व्याघ्र, किरात, शाबर,पुलिंद,यक्ष,नाग और कोल के लिए भगवान शिव, वृषभ, नाग, प्रकृति पूजन सूर्य, चंद्र की उपासना, स्थल की स्थापना और विस् अर्थात धनुष बाण की शिक्षा आश्रम की स्थापना की गयी थी। राजा चंपा भील द्वारा 14 विन शताब्दी में चंपानेर की स्थापना किया था। बिहार का चम्पारण में बाल्मीकि नगर, बाल्मीकि आश्रम, लव कुश मंदिर, राम जानकी मंदिर, तमिलनाडु के तिरुवन्मियूर, नेपाल का चितवन में वाल्मीकि मंदिर अवस्थित है। महर्षि वाल्मीकि अस्त्र और सस्त्र तथा शास्त्र के ज्ञाता और लो एवं कुश का महान गुरु थे। भगवान राम की भार्या जनक नंदनी माता सीता की महान आश्रम के संस्थापक महर्षि वाल्मीकि थे।