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मानव जीवन का सुरक्षा कवच है कृषि

मानव जीवन का सुरक्षा कवच है कृषि… इतिहासकारों ने 12000 वर्ष पूर्व इंसानों द्वारा जीने की तरीके को कृषि के विकास को बदल दिया था।खानाबदोश शिकारी संग्राहक जीवन शैली से स्थायी वस्तियों और खेती में बदलाव किए थे। 900 ई. पू. पौधे उगाने, औजार का सृजन किया गया था। भहरत में 51 प्रतिशत कृषि,4 प्रतिशत चारागाह 24 प्रतिशत वैन और 24 प्रतिशत बंजर भूमि है। #सत्येंद्र कुमार पाठक

सनातन धर्म एवं विभिन्न ग्रंथों में कृषि का उनैन, उत्पति और विकास मानव सृष्टि के प्रारंभ से हुआ है। इतिहास के पन्नों के अनुसार 13000 से 7000 ई . पू. पू . से महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भूमि को खोदकर अथवा जोतकर और बीज बोकर व्यवस्थित रूप से अनाज उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कृषि खेती कहते हैं। मनुष्य ने अफ्रीका और अरब के रेगिस्तान, तिब्बत एवं मंगोलिया के ऊँचे पठार तथा मध्य आस्ट्रेलिया, कांगो के बौने और अंदमान के बनवासी खेती नहीं करते, भारत में खेती विभिन्न रूपों में करते है। आदिम अवस्था में मनुष्य द्वारा कंद-मूल, फल और स्वत: उगे अन्न का प्रयोग एवं जीव को मार कर जीवन आरंभ किया था।

मानव जीवन की जीने के लिए खेती द्वारा अन्न उत्पादन करने का आविष्कार किया था। फ्रांस में आदिमकालिक गुफाएँ, उत्खनन के अनुसार पूर्वपाषाण युग में मनुष्य खेती से परिचित हो गया था। बैलों को हल में लगाकर जोतने का मिश्र की पुरातन सभ्यता और अमरीका मे खुरपी और मिट्टी खोदनेवाली लकड़ी कृषि का संसाधन था। पाषाण युग में कृषि का विकास सिंधुनदी के काँठे के पुरावशेषों के उत्खनन से अनुसार भारत में कृषि अत्युन्नत अवस्था मे लोग राजस्व अनाज के रूप में चुकाते थे। पुरातत्वविद् मोहनजोदड़ो के उत्खनन में गेहूँ और जौ के दाने ट्रिटिकम कंपैक्टम अथवा ट्रिटिकम स्फीरौकोकम जाति हैं।

गेहूँ की खेती पंजाब से मिला जौ हाडियम बलगेयर जाति के जौ मिश्र के पिरामिडो में प्राप्त है। सिंध में कपास की खेती होती थी। भारतीय कृषि के जनक ‘कृषिसंग्रह’, ‘कृषि पराशर’ एवं ‘पराशर तंत्र’ आदि ग्रंथों के रचयिता ऋषि परासर और घाघ भंडारी कवि थे। भारत में 9000 ई . पू . तक पौधे उगाने, फसलें व्यवस्थित जीवन जीना शूरू किया और कृषि के लिए औजार तथा तकनीकें विकसित की गई थी। मानसून होने के कारण वर्ष में दो फसलें होने के फलस्वरूप भारतीय कृषि उत्पाद तत्कालीन वाणिज्य व्यवस्था के द्वारा विश्व बाजार में पहुँचना शुरू हो गया है। भारत में जीवन के लिए पादप एवं पशु की पूजा की जाने लगी थी।

कावेरी नदी पर निर्मित कल्लानै बाँध पहली-दूसरी शताब्दी में विश्व के प्राचीननतम बाँध है। सिंधुनदी के काँठे के पुरावशेषों के उत्खनन के अनुसार पाँच हजार वर्ष पूर्व कृषि अत्युन्नत अवस्था थी। लोग राजस्व अनाज के रूप में चुकाते थे। वैदिक काल में भारत के निवासी आर्य कृषि कार्य से परिचित थे। ऋगवेद और अर्थर्ववेद में कृषि की ऋचाओं मे कृषि संबंधी उपकरणों तथा कृषि विधा का उल्लेख है। ऋग्वेद 4 . 57 .8 में क्षेत्रपति, सीता और शुनासीर को लक्ष्य कर रची गई है। शुनं वाहा: शुनं नर: शुनं कृषतु लां‌गलम्‌। शनुं वरत्रा बध्यंतां शुनमष्ट्रामुदिं‌गय।। शुनासीराविमां वाचं जुषेथां यद् दिवि चक्रयु: पय:। तेने मामुप सिंचतं। अर्वाची सभुगे भव सीते वंदामहे त्वा। यथा न: सुभगाससि यथा न: सुफलाससि।। इन्द्र: सीतां नि गृह्‌ णातु तां पूषानु यच्छत। सा न: पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम्‌।।



शुनं न: फाला वि कृषन्तु भूमिं।। शुनं कीनाशा अभि यन्तु वाहै:।। शुनं पर्जन्यो मधुना पयोभि:। शुनासीरा शुनमस्मासु धत्तम्‌ एवं वृकेणश्विना वपन्तेषं दुहंता मनुषाय दस्त्रा। अभिदस्युं वकुरेणा धमन्तोरू ज्योतिश्चक्रथुरार्याय।। अथर्ववेद में जौ, धान, दाल और तिल तत्कालीन मुख्य शस्य थे- व्राहीमतं यव मत्त मथो माषमथों विलम्‌। एष वां भागो निहितो रन्नधेयाय दन्तौ माहिसिष्टं पितरं मातरंच।। अथर्ववेद में खाद का अधिक अन्न पैदा करने के लिए लोग खाद का भी उपयोग करते थे- संजग्माना अबिभ्युषीरस्मिन्‌ गोष्ठं करिषिणी। बिभ्रंती सोभ्यं। मध्वनमीवा उपेतन।। गृह्य एवं श्रौत सूत्रों में कृषि से धार्मिक कृत्यों का विस्तार है।



उसमें वर्षा के निमित्त विधिविधान और चूहों और पक्षियों से खेत में लगे अन्न की रक्षा कैसे की जाए। पाणिनि की अष्टाध्यायी में कृषि के अनेक शब्दों की चर्चा है।भारत में ऋग्वैदिक काल से कृषि पारिवारिक उद्योग है। ऋषि परासर द्वारा कृषि पराशर, कृषि संग्रह, पराशर तंत्र, कृषि वैज्ञानिक सुरपाल का वृक्षायुर्वेद, मलयालम कृषि रचनाकार परशुराम का कृषिगीता, फारसी का कृषि रचनाकार दारा शिकोह, मगध साम्राज्य का ऋषि कश्यप की कश्यपीयकृषिसूक्ति, कृषि रचनाकार चक्रपाणि मिश्र का विश्ववल्लभ, कन्नड़ कृषि रचनाकार चावूंदराया का लोकोपकार, कृषि रचनाकार उपवनविनोद का कृषि की वास्तविकता और उत्पादन की महत्ता का उल्लेख किया गया है।

भारत में गरीबी के कारण : मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के साथ अंतर्संबंध



बिहार का समस्तीपुर जिले के पूसा में अमेरिकी कृषि विशेषज्ञ मि. हेनरी फिप्स द्वारा 1905 ई. को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई थी। ब्रिटिश साम्राज्य के कृषि विशेषज्ञ मि . हेनरी फिप्स के दिये गए 30,000 पाउन्ड् के सहयोग से ‘इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान’ व इम्पेरियल एग्रिकल्चर रीसर्च इंस्टीच्यूट पूसा की संस्थापन हुआ था। सन् 1934 में बिहार में भूकंप आने से संस्थान के भवनों को काफी क्षति होने के परिणामस्वरूप वर्ष संस्थान को नई दिल्ली स्थानान्तरित होने से ‘पूसा कैम्प्स’ कहा गया है। दिल्ली स्थित संस्थान का नाम ‘भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान’ व इंडियन एग्रिकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट कर दिया गया था।



पूसा में संस्थान को पदावनत करके ‘कृषि अनुसंधान स्टेशन व एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट स्टेशन को 3 दिसम्बर 1970 में भारत सरकार ने नामान्तरित करके ‘राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय’ का नामकरण किया गया है। सन् १९२७ में पूसा बिहार स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में पानी के प्रबंधन के लिए क्षेत्र आधारित प्रौद्योगिकी का विकास,पानी के वितरण और प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक दिशा निर्देश, सिंचाई कमांड क्षेत्रों में आउटरीच कार्यक्रम अनुसंधान और प्रशिक्षण,,जल विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारम्भ होता था। मुजफ्फरपुर जिले का ढोली में तिरहुत कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, ढोली की स्थापना वर्ष 1903 में हुई थी, तिरहुत कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, ढोली राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर से संबद्ध है।



कृषि समुदाय की लंबे समय से चली आ रही इच्छा 18 अगस्त 1960 को बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने मुजफ्फरपुर जिले के तिरहुत कृषि महाविद्यालय, ढोली की आधारशिला रखी। . कॉलेज से आकांक्षाएं कृषि ज्ञान के उत्कृष्ट स्रोत की तैनाती और बिहार की विशाल उपजाऊ भूमि को भारत के अन्न भंडार में बदलाव था। तिरहुत कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर धोली मुजफ्फरपुर, बिहार कृषि कॉलेज, सबौर (भागलपुर), बिहार पशु चिकित्सा कॉलेज, पटना, संजय गांधी डेयरी प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना, कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर। मत्स्य पालन, ढोली (मुजफ्फरपुर) गृह विज्ञान महाविद्यालय, कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय, बुनियादी विज्ञान महाविद्यालय और पूसा स्थित आरएयू में पूसा में मानविकी और स्नातकोत्तर संकाय, एम.एससी। 34 में डिग्री प्रदान की जाती है और पीएच.डी. 17 विषयों में उपाधि प्रदान किया जाता है।



ईस्ट इंडिया कंपनी की 5 जुलाई 1784 ई. में समस्तीपुर जिले का पूसा की भूमि पर ब्रिटिश साम्राज्य का कृषि भू अधीक्षक कप्तान डब्लू फ्रेजर द्वारा एग्रिकल्चर स्टैंड फार्म की स्थापना 1500 सिक्का के किराये शुल्क पर उस भूमि के लिए की गई थी। एग्रिकल्चर स्टैंड फॉर्म की स्थापना कर युवक-युवतियों को कृषि शिक्षा प्रदान करना।,कृषि की समस्याओं से निपटना और ज्ञान/प्रौद्योगिकियों का प्रसार का उद्देश्य पूर्ति किया गया था। कृषि का देवता – शास्त्रों एवं विभिन्न ग्रंथों के अनुसार कृषि का देवता भारत में न्याय देवा एवं भगवान सूर्य की भार्या छाया पुत्र शनि एवं रोम में 4 थी शताब्दी का निर्मित सैंटर्नलिया ( शनि ) टेम्पल में शनि कृषि देव है। फसल देवताओं और देवी में अमोरियों प्रारंभिक सेमिटिक जनजाति की पूजा, डैगन प्रजनन और कृषि का देवता था।



ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार सौरमंडल के शनि ग्रह को कृषि का देवता माना जाता है. शनि प्राचीन रोमन धर्म में कृषि देवता थे। सायरस, ज़ीउस की बहन है, वह फसल और कृषि, विकास के लिए जिम्मेदार की देवी है। द्वापरयुग में किसानों के देवता बलराम ( हलधर ),किसान के संरक्षक देवता एवं कृषि उपकरणों और समृद्धि के “ज्ञान का अग्रदूत” है। फसल की देवी में फसल की भारत में माता अन्नपूर्णा और ग्रीक की प्राचीन यूनानी देवी डेमेट्रियस की पुत्री पेरसिंहोने थी। रोमन धर्म में, सेरेस कृषि, अनाज फसलों, उर्वरता और मातृ देवी थी। सेरेस रोम का कृषि देव है। वृक्ष में देवी- देवताओं को व्यवस्थित भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव और माता सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती है।



सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार अन्नपूर्णा, अन्नपूर्णेश्वरी, अन्नदा या अन्नपूर्णा, अन्नपूर्णा, बंगाली:, इजेस्ट, अन्नपूर्णा, भोजन और पोषण की देवी है। ज़र्पो, कार्पो या कारपो शरद ऋतु और फसल की देवी थी। जर्पो की बहनें वसंत की थालो और गर्मी की देवी ओक्सो थीं। तीनों बहनें प्यार की देवी एफ़्रोडाइट की परिचारिका और माउंट ओलिंप के रास्ते की रखवाली करती थीं। एक्सर्पो फसलों को पकाने की देवी थी। द लेडी ऑफ़ ऑटम, ए वेदर फ़ोकलोर एवं किसान पंचांग के अनुसार डेमेटर कृषि की देवी क्यों थी? फसल की देवी गैया की पौत्री डेमेटर या ‘धरती माता’, ‘ ग्रीक पौराणिक कथाओं में, गैया आदिम, तात्विक देवताओं की सृष्टि के भोर में पैदा हुआ था।

जिओ और जीने दो का प्रणेता भगवान महावीर स्वामी



रोमन के कृषि देवता शनि ने अपने लोगों को भूमि पर खेती करने के तरीके सिखाकर कृषि का परिचय दिया था। पीढ़ी, विघटन, बहुतायत, धन, कृषि, आवधिक नवीकरण और मुक्ति के देवता के रूप में वर्णित किया गया था। शनि के पौराणिक शासन को बहुतायत और शांति के स्वर्ण युग के रूप में चित्रित किया गया था। ग्रीस पर रोमन विजय के बाद, वह ग्रीक टाइटन क्रोनस के साथ सम्‍मिलित हो गया था। देव गुरु वृहस्पति की बहन सेरेन की पुत्री प्रोसेरपाईंन सेरेस को एक हाथ में एक राजदंड या खेती के उपकरण और दूसरे में फूलों, फलों या अनाज की टोकरी पकड़े हुए है। सेरेन मकई की बालियों से बनी माला धारण करती है।



कृषि एवं फसल से देवताओं पोंगल सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित है प्रतापगढ़ के मंदिर में पूजे जाते हैँ किसान देवता। अन्नदाता को सम्मान दिलाने की मुहिम के साथ गाया जाता है। विभिन्न ग्रंथों के अनुसार 10 करोड़ वर्ष पूर्व पौधों की उत्पत्ति,कृष धातु का अविष्कार हुआ था। फसल चक्र के जनक जार्ज वांशिगटन कार्वर ने 1860 से 1943 ई. तक, 7000 ई. पू. मेहरगढ़ में गेहूं और औजारों से खेती, 6 ठी शताब्दी में मगध, मिथिला,, कौशल, वज्जिका और अंग प्रदेश में प्रसेनजित के नेतृत्व में कृषि और व्यापार को प्रोत्साहित किया गया था। 1970 में कृषि गणना, बिहार में कृषि कर, कृषि वैज्ञान के जनक एम .इस . स्वामीनाथन द्वारा कृषि वर्ष 30 जून और 1 जूलाई कृषि दिवस मनाने का निर्णय लिया था।



इतिहासकारों ने 12000 वर्ष पूर्व इंसानों द्वारा जीने की तरीके को कृषि के विकास को बदल दिया था।खानाबदोश शिकारी संग्राहक जीवन शैली से स्थायी वस्तियों और खेती में बदलाव किए थे। 900 ई. पू. पौधे उगाने, औजार का सृजन किया गया था। भहरत में 51 प्रतिशत कृषि,4 प्रतिशत चारागाह 24 प्रतिशत वैन और 24 प्रतिशत बंजर भूमि है। कृषि भूगोल की खोज यूनानी टुरेटो स्थानिज थियो फ़्रेस्ट्स वनस्पति विज्ञान के जानकार आधुनिक बागवानी के जनक दो . चड्डा थे। कृषि के विकास के लिए भारत में 63 कृषि विश्वविद्यालय एवं केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय है। बिहार में एक कृषि विश्वविद्यालय, ढोली और सबौर में कृषि महाविद्यालय है। किसानों को सिंचाई का प्रबंध मगध साम्राज्य के विभिन्न राजाओं द्वारा तलाव, आहर, पइन, नाले तथा नदियों में बांध बांधकर सिचाई की सुविधा दिलाई जाती थी। ब्रिटश साम्राज्य में कैनाल और आजादी के बाद नहर का निर्माण किया गया है। किसान अन्नदाता को विभिन्न कालों के राजाओं द्वारा कृषि के विकास के लिए प्रोत्साहित किया गया है।


मानव जीवन का सुरक्षा कवच है कृषि... इतिहासकारों ने 12000 वर्ष पूर्व इंसानों द्वारा जीने की तरीके को कृषि के विकास को बदल दिया था।खानाबदोश शिकारी संग्राहक जीवन शैली से स्थायी वस्तियों और खेती में बदलाव किए थे। 900 ई. पू. पौधे उगाने, औजार का सृजन किया गया था। भहरत में 51 प्रतिशत कृषि,4 प्रतिशत चारागाह 24 प्रतिशत वैन और 24 प्रतिशत बंजर भूमि है। #सत्येंद्र कुमार पाठक

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