दोस्तों की सेवा
ऐसे लोगों से सदा बच कर रहें और आवश्यकता पडने पर संस्था या पार्टी से सदा सदा के लिए बहिष्कृत कर देना चाहिए। नकारात्मक सोच रखने वालें ऐसे लोगों से तो उनकी खुद की औलाद भी दुःखी व परेशान होती हैं तब भला ऐसे कथित सेवाभावी लोगों को कौन सहन कर पायेगा। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
दोस्तों की सेवा वक्त आने पर जरूर करें, चूंकि दोस्तों की सेवा करने का मौका रोज रोज नहीं मिलता है। सेवा का भाव मन से होता हैं। इसलिए किसी की भी सेवा करते समय मन में घृणा, नफरत, बदले की भावना एवं क्रोध का भाव नहीं होना चाहिए। अपितु मन में प्रसन्नता का भाव होना चाहिए।
व्यक्ति को हर वक्त प्रसन्न चित्त रहना चाहिए। जब आप प्रसन्न रहैगे तभी तो सामने वाला आपके प्रेम और स्नेह का भाव समझ पायेगा। जहां प्रेम और स्नेह हैं, वहीं तो दोस्ती है। दोस्ती है तो अपनापन हैं। जहां अपनापन होता है वही सब अपने परिवारजनों जैसे होते है। इसलिए जीवन में प्यार व स्नेह की गंगा बहाते रहिए।
दोस्तों की सेवा का आनन्द का अपना एक अलग ही महत्व हैं। दोस्तों की सेवा करते समय नफा नुकसान की बात मन में नहीं आनी चाहिए। लेकिन दुःख तब होता है जब लोग पहले तो अपनापन जताकर समाज सेवा के नाम पर संस्था के पदाधिकारी व सदस्य बन जाते है और कुछ समय बाद वे ही लोग संस्था के पदाधिकारियों व अन्य सदस्यों के घर घर जाकर या फिर फोन कर फूट डालते हैं।
ऐसे लोगों से सदा बच कर रहें और आवश्यकता पडने पर संस्था या पार्टी से सदा सदा के लिए बहिष्कृत कर देना चाहिए। नकारात्मक सोच रखने वालें ऐसे लोगों से तो उनकी खुद की औलाद भी दुःखी व परेशान होती हैं तब भला ऐसे कथित सेवाभावी लोगों को कौन सहन कर पायेगा। चूंकि एक हताश व निराश मछली पूरे तालाब को खराब कर देती हैं।