अंधविश्वास का मकड़जाल
अंधविश्वास का मकड़जाल… अमूमन अंधविश्वास की बुनियाद पर उपजी घटनाओं को चमत्कार का जामा पहना दिया जाता है। समाज और धर्म के धंधेबाज अंधविश्वास को खाद व पानी देकर सींचने का काम करते हैं। सामाजिक रूढ़ियों, कुप्रथाओं, पाखंड, अंधविश्वास … #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश
अंधविश्वास से तात्पर्य तर्कहीन बातों या घटनाओं पर किए जाने वाले विश्वास से है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि धार्मिक आस्था या धार्मिक कट्टरता के चलते तर्कहीन विचारों व विश्वासों को बिना किसी ठोस आधार के स्वीकार करना ही अंधविश्वास है।हमारे समाज में ऐसे बहुत से रीत-रिवाज, मान्यताएं व कर्मकांड सदियों से विद्यमान हैं जिनकी कोई प्रमाणिकता नहीं है फिर भी इंसान परंपरागत रीति-रिवाजों व अंधविश्वासों के मकड़जाल में फंसा हुआ।
उदाहरण के लिए लंबी बीमारी,पारिवारिक कलह व बच्चा न होने से निराश औरतों के बीच झाड़-फूंक करने वाले तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र का मायाजाल कुछ इस तरह से बुनते हैं कि वे उनके झांसे में आसानी से आकर अपनी इज्जत, दौलत व जिंदगी तक गंवा बैठती हैं।इसी तरह सड़क किनारे बैठकर हाथ देखने वाले ज्योतिषियों का धंधा भी बहुत तेजी से फल-फूल रहा है। आज हमारे समाज में न केवल अनपढ़ बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी इन ढोंगियों के झांसे बड़ी ही आसानी से आ जाते हैं।
दक्षिणा स्वरूप अच्छी खासी रकम देकर उनसे सलाह लेते हैं उनके बताए कर्मकांड कराते हैं। आखिर हम यह क्यों नहीं सोचते कि दूसरों का भविष्य बताने वाले ये ढोंगीअपना हाथ देखकर अपना भविष्य क्यों नहीं जान लेते,दूसरों को अक्सर कर्मकांड में उलझाने वाले ढोंगी कर्मकांड के बल पर अपना भविष्य क्यों नहीं संवार लेते। आज इंसान किसी मुद्दे पर चिंतन-मनन करना ही नहीं चाहता। उसे तो बंधे-बंधाए रास्ते पर चलने की आदत हो गई है,चाहे वह रास्ता उसे ले जाकर खाई में ही क्यों न गिरा दे।
अमूमन अंधविश्वास की बुनियाद पर उपजी घटनाओं को चमत्कार का जामा पहना दिया जाता है। समाज और धर्म के धंधेबाज अंधविश्वास को खाद व पानी देकर सींचने का काम करते हैं। सामाजिक रूढ़ियों, कुप्रथाओं, पाखंड, अंधविश्वास व तंत्र-मंत्र के जंजाल को समूल नष्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
कानून को सख्ती के साथ लागू करने के साथ ही लोगों की सोच में बदलाव लाने की भी जरूरत है। इसके लिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्तर से प्रयास करना होगा तभी हम अंधविश्वासों को समाज से मिटा पाएंगे अन्यथा इनका दुष्चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी यूं ही चलता रहेगा,और हम कभी भी इनके मकड़जाल से बाहर निकल नहीं पाएंगें।