साहित्य लहर

कविता : मैं क्या करूं

कविता : मैं क्या करूं… फीर लगना न अपनी किस्मत के पीछे मैं बोला नहीं क्या कहूंगा घर जाकर की मैं थक गया कुछ दिन आराम चाहिए और मैने तो अभी कुछ भी नही पाया पाया तो बस सभी जगह निरसा ही पाया है क्या ये बताऊं घर जा के क्या मेरा मन नहीं था घर रुकने का पर अगली पेपर ही मुझे नही रुकने दिया अब डर सा लगता है घर वालों के सामने बैठने में…  #मोक्ष पाण्डे

एक रोज़ उदासी आई थी
मेरे चेहरे पर
बोली अब बहुत हुआ
कब तक हाय हाय करेगा
अब घर जा
और कुछ दिन तो आराम कर
फिर लगना अपने किस्मत के पीछे

मैं बोला नहाई अभी नही
आखिर क्या पाया है
मैने अपनी जिंदगी में
बोली अभी तो पेपर समाप्त हुआ
तु बड़े ही डिप्रेशन में है
जाके घर वालों के साथ

कुछ पल हसीं खुसी बिता
फीर लगना न अपनी किस्मत के पीछे
मैं बोला नहीं क्या कहूंगा घर जाकर
की मैं थक गया कुछ दिन आराम चाहिए
और मैने तो अभी कुछ भी नही पाया
पाया तो बस सभी जगह निरसा ही पाया है

क्या ये बताऊं घर जा के
क्या मेरा मन नहीं था घर रुकने का
पर अगली पेपर ही मुझे नही रुकने दिया
अब डर सा लगता है घर वालों
के सामने बैठने में

की क्या जवाब दूंगा उनके स्वालों के
जो उनके जुबान तो नही पर
चेहरे और आंखे हजार करती है
और तू कहती है जाके आराम कर लूं
मन तो मेरा भी करता है
पर मैं क्या करूं……

कविता : घी के दीये


कविता : में क्या करूं... फीर लगना न अपनी किस्मत के पीछे मैं बोला नहीं क्या कहूंगा घर जाकर की मैं थक गया कुछ दिन आराम चाहिए और मैने तो अभी कुछ भी नही पाया पाया तो बस सभी जगह निरसा ही पाया है क्या ये बताऊं घर जा के क्या मेरा मन नहीं था घर रुकने का पर अगली पेपर ही मुझे नही रुकने दिया अब डर सा लगता है घर वालों के सामने बैठने में...  #मोक्ष पाण्डे

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