कविता : मां मैं नाना के घर जाऊंगी
कविता : मां मैं नाना के घर जाऊंगी… बच्चों के संग बच्चे बन कर वे सभी बच्चों से रचनात्मक कार्य करवाते हैं खेल खेल में बहुत सी बातें वे हमें सीखा जाते हैं मां मैं नाना के घर जाऊंगी मां देखों नाना कितने अच्छे हैं अपना पराया का भेद भूला कर सबको वे अपना बना लेते हैं मां देखों नाना घर घर सद् साहित्य का अलख जगा रहे हैं… #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
मां मैं नाना के घर जाऊंगी
मां देखों नाना कितने अच्छे हैं
घर बैठे साहित्य के माध्यम से
हमें देश विदेश की सैर कराते हैं
बाल साहित्य उपलब्ध करा कर
वे बच्चों का श्रेष्ठ मनोरंजन कर रहे हैं
मां मैं नाना के घर जाऊंगी
मां नाना कितने अच्छे हैं
बच्चों के संग बच्चे बन कर
वे सभी बच्चों से
रचनात्मक कार्य करवाते हैं
खेल खेल में बहुत सी बातें
वे हमें सीखा जाते हैं
मां मैं नाना के घर जाऊंगी
मां देखों नाना कितने अच्छे हैं
अपना पराया का भेद भूला कर
सबको वे अपना बना लेते हैं
मां देखों नाना घर घर
सद् साहित्य का अलख जगा रहे हैं
साहित्य के प्रति उनका रूझान
सदा बना रहे
यहीं मैं मां सरस्वती से
हर रोज विनती करती हूं
मां मैं नाना के घर जाऊंगी
मां देखों नाना कितने अच्छे हैं