क्या मंहगाई, बेरोजगारी व अपराधों पर अंकुश लग पायेगा
सुनील कुमार माथुर
आज देश में बेरोजगारी जिस तरह से बढ रही हैं उसने हमारी शिक्षा पद्धति पर अनेक सवालियां निशान लगा दिये हैं । बढती शिक्षित बेरोजगारी से अपराध जगत में नये – नये तरीके इस्तेमाल होने लगे हैं चूंकि बेरोजगार युवापीढ़ी अपनी तमाम शक्ति गलत कार्यों में व्यय कर रातों रात लखपति बनना चाहती हैं चूंकि प्रतिस्पर्धा के इस युग में बिना घूस दिये कोई कार्य नहीं हो रहा हैं।
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार के ठेकेदार बैठें है और जो व्यक्ति लाखों व करोडों की घूस देकर रोजगार प्राप्त करेगा या सता की कुर्सी हासिल करेगा वह पहले इतनी ही राशि ब्याज सहित कमायेगा व पकडे जाने पर कैसे बचना हैं इसका भी जुगाड़ करता हैं तब भला भ्रष्टाचार की बहती गंगा कैसे रूक पायेंगे ।
बढते भ्रष्टाचार को देख कर हम आसानी से कह देते हैं कि माता – पिता ने आदर्श संस्कार नहीं दिये । लेकिन गहराई में जायें तो पता चलता हैं कि असल में संस्कारों को दोष देना बेईमानी होगा । असल में दोषी हम स्वंय हैं । हमने अपना धर्म और ईमान बेच दिया हैं । हम स्वार्थी हो गये हैं । देश प्रेम व देश भक्ति से दूर हो गये हैं । ये बातें अब भाषणों व किताबों तक ही सीमित होकर रह गयीं है और वही तक अच्छी लगती हैं ।
अगर राष्ट्र के विकास और उत्थान की बात करे तो सबसे पहले हर व्यक्ति को भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाना छोडना होगा । जब तक हर व्यक्ति में देश भक्ति की भावना जागृत नहीं होगी और उसे जीवन में आत्मसात नहीं करेंगे तब तक भ्रष्टाचार को रोक पाना एक असंभव कार्य हैं । आज हर रोज घूसखोर पकडे जा रहे हैं लेकिन घूसखोरी थमने का नाम नहीं ले रही हैं । यह तो द्रौपदी के चीर की भांति बढती ही जा रही हैं ।
बढते तमाम प्रकार के अपराध राष्ट्र पर एक कलंक है । चूंकि आज नैतिक मूल्यों का जिस तरह से पतन हुआ हैं वह किसी से छिपा हुआ नहीं है । मानवीय मूल्य नष्ट होते जा रहें है । आज बढते अपराध , बेरोजगारी , मंहगाई की मार से हर कोई परेशान हैं । पीडित पक्ष की कोई सुनने वाला नहीं है । शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं होती । अगर कभी कोई कार्यवाही होती हैं तो वह आधी अधूरी होती हैं और पीडित को न्याय नहीं मिलता । हर कोई कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं काट सकता ।
सरकारी योजनाएं केवल लोक लुभावनी है। जो केवल धनवानो को ही लाभ पहुंचाने वाली होती हैं । गरीबों के लिए ऐसी योजनाएं सिरदर्द साबित होती हैं चूंकि हर योजनाओं में अनेक प्रकार की जटिलताएं होती हैं और उन्हें पूरा कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं है । गरीबों के लिए ऐसी योजनाएं मात्र एक मीठी लालीपाप सी लगती हैं या एक स्वप्न सा प्रतीत होती हैं ।
आज मंदिरों में भी धन के बल पर आप भीड में भी पहले दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकतें है चूंकि धर्म स्थलों पर भी अब वी आई पी लाईन की सुविधा सुलभ हैं । यानि पैसा फेको और तमाशा देखों । किसी ने ठीक ही कहा हैं कि गूगल से हम देश व दुनियां का ज्ञान हासिल कर सकते हैं लेकिन आदर्श संस्कारों का ज्ञान तो गीता और रामायण पढने से ही हासिल होगा न कि गूगल से ।
राजनेता अपने आप को जनता का सेवक कहते हैं लेकिन जनता की शिकायतों का समाधान करना तो दूर की बात हैं वे पत्रों का जवाब तक नहीं देते हैं । ऐसे मे भला न्याय की क्या उम्मीद की जा सकती हैं । उनके लिए राजनीति में आने का एकमात्र लक्ष्य धन अर्जित करना ही होता हैं और अपने व अपने परिवारवालों के लिए सुख सुविधाएं जुटानै का एक सर्वोत्तम साधन बन गया हैं ।
वे आज फूट डालों और राज करों की नीति का खेल खेल रहें है और जाति , धर्म , भाषा , क्षेत्र , आरक्षण के नाम पर लोगो को लडाकर अपना स्वार्थ सिध्द कर रहे हैं व आरोप – प्रत्यारोप की राजनीति कर यैन केन प्रकारेण समाचार पत्रों में सुर्खियों से छाये रहना चाहते हैं ।
बढते अपराधों , बढती मंहगाई व बढती बेरोजगारी एवं जन समस्याओं से क्या देश की जनता को राहत मिल पायेगी?
यह सवाल आज हर कोई पूछ रहा हैं लेकिन इसका कोई सर्वमान्य जवाब देने वाला कोई नहीं है । हर कोई गोलमाल जवाब देकर इतिश्री कर लेता हैं और अपना पल्ला झटक लेता हैं जो कोई समस्या का समाधान नहीं हैं । समस्या तो समाधान चाहती है न कि दलगत राजनीति।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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