मख़मली इश्क की क़ायनात “अहद-ए-वफ़ा”

मख़मली इश्क की क़ायनात “अहद-ए-वफ़ा”, ‘प्यार करते हो” उक्त प्रस्तुति में प्रेमिका कहती हैं की इनकार भले ही जुबा पर रखा हो, भले ही निगाहें कुछ भी कहें लेकिन … लखनऊ से राजेश मेहरोत्रा “राज़” की कलम से…
ग़ज़ल को अगर इश्क की आवाज़ कहें तो इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l कहते हैं जब इश्क मूक हो जाता है तो उसे शेर/ग़ज़ल के माध्यम से पुकारा और सराहा जाता है और फिर जब ग़ज़ल को प्रेम जी जैसी ग़ज़लकारा के उम्दा अलफ़ाज़ मिल जाएँ तब वो बनती है एक मुकम्मल ग़ज़ल और तब उस ग़ज़ल में नज़र आता है जीता-जागता और मुस्कुराता इश्क l
वैसे तो आज के दौर में बहुत से नए-नए लेखक अपना नाम बनाने की होड़ में “कुछ भी कैसा भी” लिख रहे हैं हैं किन्तु इस “कुछ भी कैसा भी” की दौड़ से एकदम जुदा चल रही हैं आदरणीया प्रेम बजाज जी l शब्दों का चयन हो या भावों का लचीलापन हर एक कला को बेहद सजीव तरीके से दिखाने में प्रेम बजाज जी की कलम को महारत हासिल है l लफ्ज़ मानों प्रेम जी के भावों को समझते हैं और खुद ब खुद उनकी ग़ज़लों में आ कर उनको सजीव कर जाते हैं l अपने नाम की पहचान को सशक्त बनाने के क्रम में उनका अगला कदम है उनका अगला एकल ग़ज़ल संग्रह “अहद-ए-वफ़ा” l
द क्रिएटिव आर्ट के प्रकाशन और श्री नरेंद्र त्यागी जी के कुशल सम्पादन में आदरणीया प्रेम बजाज जी की ग़ज़लें मानों गुनगुना रहीं हों l हर एक ग़ज़ल पूरी तरह से इश्क को समर्पित है और इसी गुलदस्ते के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है श्रीमती प्रेम बजाज जी का एकल ग़ज़ल संग्रह “अहद-ए-वफ़ा” l इश्क के हर भाव को जीती इस किताब की हर एक ग़ज़ल लाजवाब और बेमिसाल बन पड़ी है lइस संग्रह में कुल 126 ग़ज़लें हैं और आप यकीन मानिए इश्क के भाव से सजी हर ग़ज़ल दूसरी ग़ज़ल पर भारी हैं l
इस एकल ग़ज़ल संग्रह की पहली कड़ी में जो प्रस्तुति सजायी गयी है वो है “कलम मेरी” यह पहली प्रस्तुति ही पूरी तरह से प्रेम मतलब स्वयं को समर्पित हैं l “क्या कहानी लिखूं अपनी जुबानी लिखूं” इसमें प्रेम जी कहती हैं बस इस प्रश्न के साथ जब कुछ लिखने बैठो तो अलफ़ाज़ खुद ब खुद मिल जाते हैं और फिर कलम रुकने का नाम नहीं लेती l प्रश्न अथाह है किन्तु जब एक बार कलम शुरू होती है तो अपने आप सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं l भाव और शब्द दोनों के बीच इश्क परवान चढ़ता है और स्थिति को पूर्ण विराम मिल जाता है l ग़ज़ब का लेखन है प्रेम जी की पहली ही प्रस्तुती का l
‘प्यार करते हो” उक्त प्रस्तुति में प्रेमिका कहती हैं की इनकार भले ही जुबा पर रखा हो, भले ही निगाहें कुछ भी कहें लेकिन तुम प्यार करते हो मुझे इस बात का यकीन है और यही सच्चा इश्क हैं जब प्रेमी मन की बात प्रेमिका पढ़ लेती है l सिर्फ अपनी बात को कह देना प्रेम जी के कलम की आदत नहीं बल्कि उसका तर्क लेकर उसको विस्तार से समझाना भी श्रीमती प्रेम बजाज जी की कलम की विशेष खासियत है l
‘ये प्रेम हैं” नामक प्रस्तुति में प्रेमिका मन के अथाह भाव वो मात्र इस प्रस्तुति में ही उड़ेल देती हैं l “प्रेम किसी वक़्त किसी मौके का मोहताज़ नहीं, प्रेम तो प्रेम हैं” ’ पंक्ति में प्रेम से उपजे मन की बात को बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त कर देती हैं वो l प्रस्तुत पंक्तियों में प्रेमिका मन की सम्पूर्ण समपर्णता को देखा जा सकता है l लेखिका के अनुसार किसी के प्रति प्रेम किसी के प्रति सम्पूर्ण समर्पण ही है l अपनी सीधी सच्ची बात को सीधे सच्चे तरीके से बताना ही इनकी लेखनी का अद्दभुत कमाल है l सरल और सुलझे शब्दों से अपनी बात को कह जाना ही श्रीमती प्रेम बजाज जी की लेखनी की विशेषता है और यही विशेषता उनको अन्य रचनाकारों से विशेष और ऊँचे स्थान पर सुशोभित करती है l
“ख्यालों में तुझे ढूंढा करेंगे” इस प्रस्तुति के भाव बहुत ही गहरे हैं l प्रेमरस में डूबी इनकी इस प्रस्तुति में मन का मयूर प्रेम के एक नए आसमान में उड़ने की चाह दिखाता प्रतीत होता है lप्रेमिका कहती हैं मैं जब-जब हाथों की लकीरों में देखती हूँ, आइना देखती हूँ मुझे तब-तब तुम और सिर्फ तुम ही नज़र आते हो l हाँ हो सकता हैं तुम मुझे साक्षात न मिल सको तो कोई बात नहीं लेकिन तुमसे मेरा इश्क इतना गहरा है की तुमसे मैं ख्यालों में ही मिल लूंगी l प्रेम की इस क़दर सम्पर्न्ता सिर्फ और सिर्फ प्रेम जी की ग़ज़लों में ही देखा जा सकता हैं l
“चाहती हूँ मैं ” उक्त प्रस्तुति में लेखिका कहती है “इश्क की तलब जितनी है मुझे, तुझे भी कुछ कम नहीं…उनका कहने का मतलब साफ़ दिखता है की प्रेम कभी एक तरफ़ा नहीं होता बल्कि इसमें दोनों ही तरफ एक जैसी स्थिति होती है l दोनों ही दिल तड़पते हैं और दोनों ही दिल प्रेम की बारिश में एक साथ नहाते हैं l किसी से इश्क में दिल की चाहत क्या-क्या होती है उक्त प्रस्तुति के माध्याम से आसानी से समझा जा सकता है l
“धरती अम्बर का प्रेम” प्रस्तुति में प्रेम जी ने प्रेमिका के मन की चंचल दशा का सुन्दर वर्णन किया है l प्रेम जी की इस प्रस्तुति में कहना है की प्रेम वो अभिव्यक्ति हैं जो दूरी को नहीं समझती l प्रेम तो प्रेम हैं भले ही प्रेमिका का प्रेमी कितनी ही दूर क्यों न हो प्रेम तो फिर प्रेम ही है l श्रृंगार रस का सुन्दर चित्रण इनकी प्रस्तुति में प्रयुक्त शब्दों से महसूस किया जा सकता है l उक्त पंक्तियों में प्रेमिका के अंतर्मन की प्रेम व्यथा को शब्दों के माध्यम से इतना सुन्दर रूप दिया है की पढ़ते समय यह रचना मात्र रचना न होकर एक चलचित्र सा प्रतीत होता है l जिसको पढ़ने वाला पाठक स्वयं पाठक न होकर स्वयं को प्रेमी के रूप में महसूस करता है lदूरी तब दूरी न होकर मात्र एक धागा सा प्रतीत होता है जब प्रेम की तड़प में दो दिल बराबर से जल रहे हों l
श्रीमती प्रेम बजाज जी के इस एकल ग़ज़ल संग्रह “अहद-ए-वफ़ा” के लिए कहने को तो बहुत कुछ है किन्तु एक समीक्षक होने के कारण मैं चाहूँगा की इस एकल ग़ज़ल संग्रह को पाठक स्वयं ही पढ़कर प्रेम जी की लेखनी को जाने और समझें l आप देखेंगे कि ग़ज़ल संग्रह पढ़ने पर प्रेम जी की हर प्रस्तुति पहले से अधिक सार्थक और उससे कहीं अधिक सशक्त प्रतीत होती है l शब्दों की सुन्दरता हो या भावों का पैनापन दोनों ही मापदंडों में प्रेम बजाज जी का यह एकल ग़ज़ल संग्रह एकदम खरा सिद्ध होता है l जैसा की इस एकल ग़ज़ल संग्रह के नाम में ही इस संग्रह में शामिल समस्त प्रस्तुतियों की सार्थकता है l मानों इस संग्रह की हर प्रस्तुति इसके नाम के साथ अपना प्यारा सा रिश्ता जोड़ती प्रतीत होती है lयही एक ग़ज़ल लेखक की जीत हो जाती हैं जब उसके शीर्षक बिना पूरी प्रस्तुति पढ़े पाठक के दिल में उतर जाते हैं l
अंत में मैं “राजेश मेहरोत्रा “राज़” आप सभी सुधि पाठक गणों से निवेदन करता हूँ कि ‘द क्रिएटिव आर्ट’ द्वारा प्रकाशित , श्री नरेंद्र त्यागी जी द्वारा संपादित एवं श्रीमती प्रेम बजाज जी द्वारा लिखित इस एकल ग़ज़ल संग्रह “अहद-ए-वफ़ा” को जरूर पढ़ें क्योंकि इसमें न सिर्फ इश्क का खजाना है बल्कि इश्क की नयी भाषा को परिभाषित करता एक बहुत ही सुन्दर एकल ग़ज़ल संग्रह है l मैं इस एकल संग्रह “अहद-ए-वफ़ा” को अपनी विशेष शुभकामनाएं देता हूँ और इसकी प्रसिद्धि की कामना करता हूँ साथ ही साथ इसकी लेखिका श्रीमती प्रेम बजाज जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ l
एकल ग़ज़ल संग्रह: अहद-ए-वफ़ा
ग़ज़लकारा: श्रीमती प्रेम बजाज
प्रकाशक: द क्रिएटिव आर्ट
संपादक: श्री नरेंद्र त्यागी
समीक्षक: राजेश मेहरोत्रा ‘राज़’
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