पाठ्य पुस्तकें और इंटरनेट सेवा
पाठ्य पुस्तकें और इंटरनेट सेवा, इंटरनेट पर सब कुछ ठीक तरह से नहीं मिलता है। वहां तो वही मिलेगा जो लिखा है। जबकि समस्या का जब हम पूछ कर समाधान खोजते है तो अनेक नयी बातें सिखने व समझने को मिलती हैं और वे दिमाग में स्थाई रूप से जम जाती है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कोरोना काल क्या आया लोगों के जीवन को बर्बाद कर के रख दिया। शिक्षण संस्थानों ने पढाई मोबाइल पर आरम्भ कर दी। आन लाइन शिक्षा के बहाने हर बच्चे के हाथ में मोबाइल पखडा दिया। यही वजह है कि आज बच्चों के पास मोबाइल है और वे पेरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर हो गये हैं।
इंटरनेट पर बढती निर्भरता से आज इंसान के सोचने समझने की शक्ति कमजोर होती जा रही है और वह हर चीज व समस्या का समाधान इंटरनेट पर ही खोज रहा है जिसके कारण आपसी संवाद भी घटता जा रहा है जिससे व्यक्ति एकांकी होता जा रहा है। बच्चे अपनी समस्या का समाधान अब अपने से बडों, अनुभवी लोगों और अपने बराबर वालों से पूछने को अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। जो उचित नहीं है।
इंटरनेट पर सब कुछ ठीक तरह से नहीं मिलता है। वहां तो वही मिलेगा जो लिखा है। जबकि समस्या का जब हम पूछ कर समाधान खोजते है तो अनेक नयी बातें सिखने व समझने को मिलती हैं और वे दिमाग में स्थाई रूप से जम जाती है। पूछने से नयी नयी बातें जानने की जिज्ञासा बढती हैं जो इंटरनेट पर संभव नहीं हैं।
अतः आन लाइन पढाई के स्थान पर पुनः पाठ्य पुस्तकों की ओर लौटना होगा और कक्षा में पढाया गया अध्ययन ही उचित होगा ताकि विधार्थी पुनः पाठ्य पुस्तकों की ओर लौटे।
चतुर्दिक विकास का स्तंभ है परिवार
Nice article