साहित्य लहर
स्यांल़ रवैं रवैं की हरचि गैं नी
रचना राजेश ध्यानी “सागर”
स्यांल़ रवैं रवैं की हरचि गैं नी
कूणीं फुंगुणीं उजणीं गैनी
थाडों म कंडली क बुज्यां
जमीं गीं
भितरीं क क्वरां झैंणि गैं नी।
पंदेंरी ह्वें ग्यें जमना छुई
घसेंरी द्वी चार रें गीं
भैंसु भी सकैंन्दु नी ,
दूधा कि पणकताल ह्वैं ग्यै।
ट्वपली भि दिखैंदी कम
सुगंरों की भरमार ह्वे ग्यें।
घाट म लिजाणां कु
गाड़ी बुक हूंणीं च
लाखुणं छोडी दारू की
चम सेटिंग हूंणीं च।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजेश ध्यानी “सागर”सम्पादक, काफ़ल एवं कविAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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