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भारतीय ज्ञान परम्परा के ज़रिये पुरातन संस्कृति से जुड़ेंगे छात्र

भारतीय ज्ञान परम्परा के ज़रिये पुरातन संस्कृति से जुड़ेंगे छात्र, भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक आईपीएस अनिल रतूड़ी ने कहा कि सभ्यता चाहे जितनी बड़ी हो, बिना संस्कृति की रक्षा के वो मिट जाती है।

देहरादून। पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के महत्व पर प्रकाश डालने और भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित रीसर्च को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में एक सम्मलेन का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षा जगत सही विभिन्न क्षेत्रों के जाने माने विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किये।

मांडूवाला स्थित देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित सम्मलेन का आयोजन किया गया, जिसमें आधुनिक शिक्षा पद्धति में प्राचीन शिक्षा पद्धति के सम्मिश्रण की समीक्षा की गयी और इसे आने वाली पीढ़ी के लिए उपयोगी बताया। सम्मलेन के मुख्य अतिथि भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय सह-संगठन मंत्री शंकरानंद वीआर ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय शिक्षण प्रणाली में मील का पत्थर साबित होगी।

भारतीय शिक्षा को जिस बदलाव की आवश्यकता थी, केंद्र सरकार ने उसे नई शिक्षा नीति के रूप में शिक्षा जगत को भेंट किया है।क्योंकि, यह अंग्रेजों की चली आ रही शिक्षा नीति को भारतीय पुरातन शिक्षा और संस्कृति के रूप में एक सही जवाब है। नयी शिक्षा नीति के माध्यम से देश की आने वाली पीढ़ी हमारे देश के वास्तविक इतिहास व महान संस्कृति से परिचित हो सकेगी।

ये युवाओं को भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से पुरातन संस्कृति से जोड़ने का एक बेहतरीन उपाय है और सभी शिक्षण संस्थानों को इसे अपनाकर आगे बढना चाहिए। भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक आईपीएस अनिल रतूड़ी ने कहा कि सभ्यता चाहे जितनी बड़ी हो, बिना संस्कृति की रक्षा के वो मिट जाती है। इसलिए हमें अपनी पुरातन संस्कृति को भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से आगे बढ़ाना होगा और छात्रों को अपनी परम्पराओं से अवगत कराना होगा।



हेस्को के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने भारतीय ज्ञान परम्परा की उपयोगिता पर बल देते हुए कहा कि दुनिया पर हमारी पकड़ तभी बनेगी जब हमारी शिक्षा प्रणाली मज़बूत होगी। प्राचीन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के सम्मिश्रण से बनी नयी शिक्षा नीति का अनुसरण बहुत अच्छा प्रयास है, क्योंकि ये युवाओं के भविष्य की दिशा और दशा तय करेगी।



विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर डॉ. प्रीति कोठियाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि सम्मलेन का उद्देश्य प्रतिभागियों को भारतीय ज्ञान परम्परा के सभी पहलुओं पर अंत:विषय अनुसंधान को बढ़ावा देने और साथ ही आगे के अनुसंधान और सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली को संरक्षित और प्रसारित करने में सक्षम बनाना है।



कार्यक्रम के उदघाटन अवसर पर विश्वविद्यालय के उपकुलाधिपति श्री अमन बंसल ने अतिथियों को सम्मानित किया। इस दौरान उपकुलपति प्रोफ़ेसर डॉ. आरके त्रिपाठी, चीफ ऑडिटर डॉ. संदीप विजय, मुख्य सलाहकार डॉ. एके जायसवाल, डीन एकेडेमिक्स डॉ. एकता उपाध्याय, सहित विभिन्न गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।



भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार हो अनुसंधान : डॉ. पांडे

सम्मलेन के दौरान भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ स्कूल एजुकेशन एंड लिटरेसी (डीएसईएल) के निदेशक डॉ. जेपी पांडे ने कहा कि नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य आने वाली पीढ़ी को देश के वास्तविक इतिहास व महान संस्कृति से रूबरू करवाना है। इसलिए पारंपरिक भारतीय शिक्षण प्रणाली पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय ज्ञान परम्परा के विभिन्न आयामों पर आधारित अन्तःविषय अनुसंधान को बढ़ावा मिले। इसलिए देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी का ये प्रयास प्रशंसनीय है।उन्होंने अपने विचार वेबिनार के माध्यम से रखे।

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