कविता : उस नींद को अब तक ढूंढ रहा

राजेश ध्यानी सागर
उस नींद को
अब तक ढूढं रहा
जो मां की
कोंख में मिली मुझे।
बाहर आया
कुछ देर रमा
फिर दौड़ कहां
छोड़े मुझे।
दौड़ लगाऊं
थक जाऊं ,
वो नींद नहीं
मिली मुझें ।
इस दौड़ में मुझकों
ज्ञान हुआं ,
रोयेगें चिल्लायेगें
बडी जोर से
मुझे हिलायेगे।
उस नींद से अब
कहां जगने वाला
कंधों में
मुझें हिलायेगें ।
कोख सी मुझकों
नींद मिली है
नहाने पर भी
ना जागूं ,
ये दुनिया की
रीत बनी है
मुझकों मेरी
नींद मिली है ।
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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