लघुकथा : विश्वासघात

नितिन त्रिगुणायत ‘वरी’
शाहजहांपुर (उ.प्र.)
खुशनसीब है वो जो तुम्हारा पहला प्यार बना – अनमोल ने करुण स्वर में पूनम से कहा। बदले में उसे नफरत के अलावा क्या मिला? पूनम ने गुस्सा भरे शब्दों में कहा। जिस इंसान ने मेरी कद्र ना की कि धोखा दिया मुझे किसी और से शादी करके उसकी अब मुझे शक्ल से भी नफरत है, मैंने उसे अपना सब कुछ माना था लेकिन वह धोखेबाजी का मुखौटा पहने हुए हैं यह कभी पहचान नहीं पाई।
क्या वह सब कुछ तुम हमें दे पाओगी – अनमोल ने चिंता भरे मन से पूछा।
अरे क्यों नहीं जब तुम मेरे साथ विश्वास ईमानदारी से जुड़े हो तो क्या मैं तुम्हारे साथ कुछ गलत कर सकती हूं – पूनम ने अनमोल को समझाते हुए कहा। पूनम के ऐसे शब्द सुनकर अनमोल का मन चिंता के बोझ से कुछ हल्का हुआ लेकिन प्रश्नों का पुलिंदा अभी भी अनमोल के अंदर फड़फड़ा रहा था।
अक्सर लोग कहते हैं जिसे पहली बार धोखा मिल जाए फिर वह कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाता है – अनमोल ने कपकपाते हुए स्वर मे कहा। अगर विश्वास न होता तो क्या मैं तुमसे कभी बात करती पूनम ने अनमोल के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा। प्यार की खट्टी मीठी मुलाकातों,बातों के साथ एक लंबा समय साथ बीत जाने के बाद पूनम का व्यवहार बदलने लगा।
अब वो वैसे बात भी नहीं करती थी अनमोल के कुछ पूछने पर उस पर ही गुस्सा करती थी और कहने लगी मुझे अकेला छोड़ दो मुझसे कुछ नहीं हो पाएगा मैं पहले वाला कुछ भी नहीं भूल पा रही हूं – पूनम ने अनमोल से गुस्सा भरे शब्दों में कहा। लेकिन तुमने तो कहा था विश्वास रखो मैं कभी कुछ गलत नहीं होने दूंगी – अनमोल में कंपित स्वर में कहा।
हां वो सब कुछ मैंने झूठ कहा था – पूनम ने गुस्से में कहा। पूनम का ऐसा बर्ताव देखकर अनमोल अंतर्मन में उठते प्रश्नों की ज्वाला को अंदर ही समेटे बस यही सोच रहा था कोई भी इंसान भावनाओं के साथ खेल कर इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है।