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व्यंग्य : न होटल न ढाबा, बन जाओ बाबा

राज शेखर भट्ट

इनसान को जीवन जीना है तो काम करना जरूरी है। क्योंकि काम करेगा तो कमायेगा, कमायेगा तो खायेगा और खायेगा तो जियेगा। यह भी सच है कि हर कोई अमीर परिवार में नहीं पैदा होता और अमीर बनना हर कोई चाहता है। अच्छी पोजिशन, अच्छा रूतबा, अच्छा जीवन और अच्छा रहन-सहन सभी को चाहिए।

इसके विपरीत बात करें तो यह भी सच है कि पैदा होते ही हर कोई नामचीन या अमीर नहीं बन जाता, शुरूआत शून्य से ही होती है। अगर कोई सिर्फ यह सोच ले कि मैं एक बड़ा होटल खोल लूं, खूब कमाऊं और मजे में जिन्दगी काटूं, तो केवल सोचने से ही जीवन निर्वाह नहीं हो जाएगा, बल्कि करना भी पड़ेगा। लेकिन आज की दुनिया को सामने रखकर देखें तो एक तरफ अनेक लोग ऐसे भी हैं, जो कर्म प्रधान हैं और कर्म को ही प्राथमिकता देते हैं।

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धन्यवाद

आत्मविश्वास से भरे हैं और जीवन में लक्ष्य निर्धारित भी करते हैं। अपने काम शुरू करते हैं और सड़क के किनारों में रेड़ी लगाते हैं। अगर यहीं दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत करते काम करें तो वो ढाबे भी खोल सकते हैं, रेस्टोरेंट भी खोल सकते हैं और बड़ा होटल भी। मतलब यह कि अंत में वह अपनी मंजिल को भी प्राप्त कर सकते हैं और अच्छा जीवन भी जी सकते हैं। लेकिन सभी मेहनत और ईमानदारी के पुजारी थोड़ी होते हैं, पैसे कमाने के रास्ते तो और भी हैं।

क्योंकि, अधिकतर पढ़े-लिखे और मेहनती लोग भटक रहे हैं मंजिल की खोज में। कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ लोग उतर गये हैं राजनीति में और हो गये फेमस, ले आये खुशहाली। पढ़े-लिखे एक तरफ और अनपढ़ एक तरफ, लेकिन जो इन दोनों के बीच के लोग हैं। जिनको कुछ आता ही न हो, न राजनीति में जाने के लायक हों और न मेहनत करना चाहते हों।

ऐसे लोगों को कहते हैं ‘‘बाबा’’।

ऐसे लोगों को कहते हैं ‘‘बाबा’’। इनको साधुत्व का बिजनेस शुरू करने के लिए ज्यादा खर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। शरीर पर पीले वस्त्र, हाथ और गले में रूद्राक्ष, माथे पर चंदन की लीपापोती, पांव में खड़ाऊ, हाथ में कमण्डल और लम्बे बाल हों और बिजनेस शुरू। लेकिन साधुत्व के बिजनेस में अब बाबा की पोस्ट का अधुनिकीकरण हो चुका है और पांव में खड़ाऊ, कमण्डल और लम्बे बाल की एलिजबिलिटी समाप्त कर दी गयी है।

क्योंकि जब बाबाओं बिन कमर तोड़े सोना मिल जाए, पैसे मिल जायें, जमीनें मिल जायें तो फॉर्च्यूनर में घूमने में भी क्या हर्ज है। रटे-रटाये प्रवचनों के लोगों को बेवकूफ बनाओ, कमाओ और फ्री का माल खाओ। लोग भी भेड़ चाल में लगे हुये हैं और गिरते जा रहे हैं बाबाओं के गड्ढ़े में। एक अमीर आदमी लाखों रूपये, सोना, जमीनें एक बाबा की झोली डाल देगा लेकिन गरीब की मदद करने कोई नहीं आता। भारत में गरीबी इतनी है कि लोग भीख तक मांगते हैं। लेकिन उनसे बड़े भिखारी तो ये बाबा हैं, जो जब फ्री का माल बटोरने में लगे हुये हैं और उस भीख को दान-पुण्य का नाम देते हैं।

इन्हें कहते हैं सात्विक, ज्ञानी, सामाजिक, राजसी और तामसिक चीजों से दूर रहने वाले

श्रीमद्भागवत गीता में तीन गुणों का उल्लेख है, जिसमें सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण निहित हैं। हमारे देश हिन्दुस्तान में प्राचीन काल से ही साधु बाबाओं का चलन, प्रचलन और प्रकोप देखने को मिलता है। यदि सतोगुण और साधुत्व की बात करें तो पूर्ण रूप से सात्विक होना, राजसी तथा तामसी चीजों की इच्छा का त्याग करना ही साधुत्व है। परन्तु कलयुगी बाबाओं साधुत्व कुछ इस प्रकार का होता है। अच्छी से अच्छी गाड़ी होना, शरीर का सोने-चांदी से लबालब भरा रहना, अच्छा मोबाईल, अच्छा आश्रम, अच्छा भोजन और अच्छा दान देने वाले भक्तों का होना। इन्हें कहते हैं सात्विक, ज्ञानी, सामाजिक, राजसी और तामसिक चीजों से दूर रहने वाले, अच्छी-सच्ची और समानता सोच रखने वाले बाबा।

बात करें अगर राजसी लोगों की तो यह है बड़े-बड़े बिजनेसमैन और मंत्री-संत्रियों का ठिकाना। इसी खासियत का नजारा है कि देश में लोकतंत्र है, जो अब लोकतंत्र नहीं नेतातंत्र बनकर रह गया है।


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One Comment

  1. भगवा वस्त्र पहनने से कोई साधु संत नही बनता और भाषणबाजी करने से कोई नेता नही बनता हैं लेकिन इस हिन्दुस्तान में जो चापलूसी करता है किसी को मूर्ख बना सकता है वह बाबा तो क्या भगवान तक बन सकता हैं चूंकि हमारे देश मे अंध भक्तों की कोई कमी नहीं ।

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