***
अपराधउत्तराखण्ड समाचार

नई एफआईआर दर्ज करना न्यायालय की अवमानना होती है : पूर्व डीजीपी

स्टेटस, क्लास और रूतबे के चक्कर में लटक रहे हैं आपराधिक मामले...

दूसरे शब्दों में कहें तो यदि एक आम आदमी का केस होता तो अब तक वो सजा पा चुका होता है। लेकिन स्टेटस, क्लास और रूतबे के चक्कर में अंकिता मर्डर केस, यूकेएसएसएससी मामला, विधानसभा भर्ती घोटाला और पूर्व पुलिस मुखिया का प्रकरण भी लटकाया जा रहा है। पुलिस महकमे का मखौल उड़ाया जा रहा है और न्यायालय को भी राजनीति का अड्डा बनाने की कोशिश की जा रही है।

देहरादून। पूर्व पुलिस मुखिया वर्तमान में सुर्खियों में चल रहे हैं। क्योंकि उनके कारनामों पर पुलिस का शिकंजा है और न्यायालय में केस चल रहा है। जैसा कि पेड़ काटने का मामला तो 2013 से अब तक नैनीताल हाईकोर्ट में चल रहा है। लेकिन जानकारी के अुनसार पूर्व पुलिस मुखिया जब पद पर थे तो उन्होंने 1.5 हेक्टेयर जमीन पर अवैध रूप से पेड़ काटे गये थे और पुलिस ने तब वन विभाग की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की थी। फलस्वरूप, वन विभाग को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।

वर्ष 2012-13 में एफआईआर दर्ज कराने पर कई सवाल उठे और वन विभाग ने सभी का जवाब भी दिया। प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) ने बताया कि तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी, मसूरी वन प्रभाग की ओर से आरक्षित वन भूमि में पेड़ों के कटान से संबंधित जांच के लिए भी कदम उठाये गये। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, देहरादून की अदालत में बीएस सिद्धू के विरुद्ध भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 और अन्य सुसंगत नियमों के अंतर्गत दो परिवाद दाखिल किए गए थे।

लम्बे समय के बाद जांच पड़ताल शुरू की गयी और छानबीन की गयी। अंततः इस मामले में पुलिस की ओर से बीएस सिद्धू सहित सात अन्य आरोपियों के खिलाफ डीएफओ मसूरी वन प्रभाग की तहरीर पर 23 अक्तूबर को मुकदमा दर्ज किया गया है। जो कि अभी विचाराधीन अवस्था में चल रहा है। क्योंकि काले कोट और अंधे कानून को बहुत चीजों की आवश्यकता होती है। जैसे सुबूत, गवाह, छानबीन, तलाशी, जांच और इनसे भी ऊपर समय की पाबंदी। उसके बाद देखा जायेगा कि अपराधी किस क्लास का है, कितना उसका रूतबा है और इससे शासन-प्रशासन को कोई दिक्कत तो नहीं होगी।

न्यायालय की अवमानना की बात करते हैं पूर्व पुलिस मुखिया

इस प्रकरण के संबंध में पूर्व पुलिस मुखिया बीएस सिद्धू की ओर से मीडिया में बयान दिया गया कि उनके खिलाफ न्यायालय में वाद चल रहा है। अतः उन पर नई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है, क्योंकि ऐसा करने पर न्यायालय की अवमानना होती है। इस संबंध में वन प्रमुख का कहना है कि एफआईआर दर्ज किए जाने से पूर्व वन विभाग की ओर से शासन को इस प्रकरण के सभी पहलुओं से अवगत कराया गया है। एफआईआर दर्ज होने से किसी भी न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

बहरहाल, पूर्व पुलिस मुखिया के बातों पर गौर किया जाय और सत्यता की कसौटी पर खरा मान लिया जाय तो कानून भी सभी के लिए एक समान होना अनिवार्य है। यहां स्टेटस, रूतबा और अपराधी की क्लास को न देखा जाय। अपराधी को अपराधी ही माना जाय, न कि आम आदमी, न मंत्री, न व्यवासयी और न ही पूर्व डीजीपी।

दूसरे शब्दों में कहें तो यदि एक आम आदमी का केस होता तो अब तक वो सजा पा चुका होता है। लेकिन स्टेटस, क्लास और रूतबे के चक्कर में अंकिता मर्डर केस, यूकेएसएसएससी मामला, विधानसभा भर्ती घोटाला और पूर्व पुलिस मुखिया का प्रकरण भी लटकाया जा रहा है। पुलिस महकमे का मखौल उड़ाया जा रहा है और न्यायालय को भी राजनीति का अड्डा बनाने की कोशिश की जा रही है।

मामले से संबंधित समाचारों को जरूर पढ़ें-

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights