कविता : क्या-क्या देखा है…?

सुनील कुमार माथुर
एक दिन सपने में घूमते हुए प्रभु ने दर्शन दिये
वे बोले , हे मेरे भक्त !
तूने इस नश्वर संसार में क्या – क्या देखा है
मुझे जरा विस्तार से बताइयेगा
तब मैं हाथ जोडकर प्रभु से बोला ,
हे प्रभु ! इतनी भक्ति के बाद भी
आपने देशवासियों को इस नर्क में क्यों डाला
पेट्रोल महंगा, डीजल व रसोई गैस मंहगी,
सब्जियां व खाद्यान्न महंगे, शिक्षा, चिकित्सा,
आवास महंगे, जिधर देखों उधर मंहगाई की मार हैं
कुल मिलाकर इस नश्वर संसार में
मंहगाई को चारों ओर फलते फूलते देखा
हे प्रभु ! भ्रष्टाचार को द्रौपदी के
चीर की भांति बढते देखा
कदम – कदम पर भ्रष्टाचार को पनपते देखा
हर रोज भ्रष्टाचार में लिप्त लोग पकडे जाते हैं
फिर भी इसका तांडव जारी हैं
हे प्रभु ! अब आप ही बतायें कि
ये वास्तव में भ्रष्टाचारी हैं या
भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बहाने
अपना प्रचार-प्रसार फोकट में करा रहें है
हे प्रभु ! तेरी यह कैसी लीला हैं
मंहगाई बढाकर जनता की कमर तोड दी और
अब एक भोलेभाले भक्त से पूछ रहा हैं कि
इस नश्वर संसार में क्या – क्या देखा है ?
हे प्रभु ! इस मंहगाई ने सभी देशवासियों को
नीम्बू की तरह निचोड दिया हैं नतीजन
शर्म के मारे वह आज बाजार से या तो गायब है या
कालाबाजारियों के हाथों कठपुतली बन गया हैं
आज नीम्बू सभी की आंखों का तारा बन गया हैं
वह ईद का चांद बन गया हैं
बडा मंहगा और सिरदर्द बन गया हैं
हे प्रभु ! मंहगाई और भ्रष्टाचार से
सभी को मुक्ति दिला दीजिए
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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