कविता : हम शराबी जात
कविता : हम शराबी जात। नेताओं के भाषण निराले करते हैं, जो बड़ी-बड़ी बात, जनता जाये भाड़ (राख) में कब पड़ी है इनको लात। पढ़ें जालौर (राजस्थान) से साहित्यकार, आलोचक, पत्रकार एवं कवि भारमल गर्ग ‘विलक्षण’ साहित्य पंडित की कलम से…
एक गांव की चार बात गर्व करो हम शराबी जात
बात निकलेगी सात सच्ची गर्व करो हम शराबी जात !!
ना बच्चों का भविष्य पीड़ा पलानी भाव से
प्रार्थना से पहले शराब बड़ी कविता काम से
गर्व करो हम शराबी जात !!
एक दुखियारी रात को ढूंढती है अपना श्रृंगार
साथ देगा कौन उसका बातों की है यह बात
गर्व करो हम शराबी जात !!
त्रेता के अर्जुन तीर चलाते अब खोजें कीचड़ की भात
परिवार बैठा भूखा प्यासा कब आएगी सुखद सौगात
गर्व करो हम शराबी जात !!
नेताओं के भाषण निराले करते हैं जो बड़ी-बड़ी बात
जनता जाये भाड़ (राख) में कब पड़ी है इनको लात
गर्व करो हम शराबी जात !!
विष के प्याले में अमृत की बूंदों को आभास सुखद
इतना दृढ़ विश्वास था मुझे, अब जीवन का मोह दुखद
गर्व करो हम शराबी जात !!
ढोला मरवण की प्रेम कथा अब दारू में छुप जाती है
मरवण बैठी भूखी प्यासी अब तानों के मर जाती है
गर्व करो हम शराबी जात !!
हल्का भोजन कजरी का तीस का घूमर नृत्य करे
आलिंगन स्वीकार है जब तक सांसों को द्रवित करें
गर्व करो हम शराबी जात !!
कल रात घर से निकला भरपेट खाना खाया था
दो प्रजाति ऐसी मिली मुझको बहुत समझाया था
गर्व करो हम शराबी जात !!
चलभास का विश्वविद्यालय चलता व्हाट्सएप नाम से
बड़ी-बड़ी जो बातें करते चुप रहते हैं दाम रुपय दाम से
गर्व करो हम शराबी जात !!
आज अकेला घूम रहा हूं गांव विकास के काम से
जनता की बैटरी चुपचाप सहती है बड़ी ईमान से
गर्व करो हम शराबी जात !!
मंदिर मस्जिद क्या है देखो बिकती मदिरा पास में
देखो हिंदुस्तान के बालक अपना दर्पण खाक में
गर्व करो हम शराबी जात !!
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